'एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति'- ब्रह्म एक है, उसके अतिरिक्त दूसरा कुछ और नहीं है। सभी में अधिष्ठित परब्रह्म ही मूलभूत तत्व है। अद्वैतवाद का यह सिद्धांत हिन्दू धर्म का आधार है। पर साथ ही हिन्दू धर्म अनेक संस्कृतियों, मत-मतांतरों, पूजा-पद्धतियों, विधि-विधानों का संगम भी है। आरंभ से ही इसमें बहु देवतावाद का विधान प्रचलित रहा है। 33करोड़ देवी-देवताओं के पूजन का प्रावधान रहा है। श्रद्धावान हिन्दू समाज अपनी-अपनी आस्था के अनुसार भिन्न-भिन्न आराधना पद्धतियों का अनुसरण करता है।
इन विविध मत-मतांतरों में जो दो मुख्य मत देखने को मिलते हैं, वे हैं- शैव मत और वैष्णव मत। शैव मत के अनुयायी भगवान शिव को सर्वोपरि मानते हैं, तो वहीं वैष्णव मतावलम्बी श्री विष्णु को ही श्रेष्ठ मानते हैं। प्राचीन काल से ही इन दोनों मतों के अनुयायियों के बीच मतभेद रहे हैं। आज भी अनेक स्थानों पर यह विवाद देखने को मिलता है।
दरअसल, शैव मत का अनुसरण करने वाले लोग भगवान शंकर को स्वयंभू, सर्वनियंता, विश्वेश्वर, सभी देवों में सर्वोपरि- महादेव की उपाधि देते हैं। उनकी मान्यता है कि इन्द्र देव के पलक झपकने से मनुष्य की मृत्यु होती है। ब्रह्मा जी के नेत्र झपकने से इन्द्र देव मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वहीं विष्णु जी का आँख झपकना ब्रह्मा जी की मृत्यु का कारण है, तो शिव जी के मात्र पलक झपकने से श्री विष्णु मृत्यु को प्राप्त होते हैं। पर वैष्णव मत के उपासकों के लिए यह तथ्य स्वीकार्य नहीं है। वे श्री नारायण को ही सर्वोपरि मानते हैं। उनकी मान्यता है कि भगवान शिव के पलक झपकने से ब्रह्म देव की मृत्यु होती है और श्री विष्णु के आँख झपकने से शिव जी मृत्यु को प्राप्त होते हैं। स्पष्ट है कि दोनों ही मतों के लोग बिना वास्तविकता जाने अपने इष्ट को सर्वोपरि सिद्ध करने की होड़ में हैं।
इसके अतिरिक्त दोनों ही मतों के अनुयायी अपने तर्क को सिद्ध करने के लिए ग्रंथों-पुराणों का भी सहारा लेते हैं। वे अपने-अपने इष्ट देव को सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए पौराणिक कथाओं को प्रस्तुत करते हैं।...
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