'वैदिक विज्ञान' स्तम्भ द्वारा 'अखण्ड ज्ञान' अनेक शास्त्रीय घटनाओं को विज्ञान और तर्कों के आधार पर आपके समक्ष रखती रही है। ...
ऐसा ही एक विषय इस माह हम आपके समक्ष लेकर आ रहे हैं- 'क्लोनिंग'। क्लोनिंग में आधुनिक विज्ञान यूँ तो अभी अपनी शैशव अवस्था में ही है। परन्तु इसे लेकर लोगों के भीतर चिंताएँ हैं। एक भय है। यदि मानव की क्लोनिंग सफल हो गई, तो यह ज़रूरी तो नहीं इससे मात्र सद्वृत्ति वाले लोग ही जन्म लेंगे। यदि हिटलर और मुसोलिनी जैसे तानाशाह पैदा हो गए, तो उनकी अपराधिक और हिंसक प्रवृत्ति से इस धरा को कैसे बचाया जा सकेगा?
इस सन्दर्भ में एक शास्त्रीय आख्यान है। यह दृष्टांत मार्कण्डेय पुराण में श्री दुर्गा सप्तशती के आठवे अध्याय में आता है। कथा बताती है, पूर्वकाल में शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो बहुत ही पराक्रमी दैत्य थे। उन्होंने छल-बल का प्रयोग कर इन्द्र से स्वर्ग और यञभाग छीन लिया था। तब सभी देवताओं ने माँ जगदम्बिका का आह्वान किया। उनके समक्ष प्रार्थना की कि वे उन्हें इस विपत्ति से बहार निकालें। ...
शुम्भ-निशुम्भ को जब यह सूचना मिली, तो उन्होनें अपने अनेक पराक्रमी और शूरवीर दैत्यों को आदेश दिया- 'जाओ, जाकर उस जगदम्बिका को लेकर आओ और हमारे सामने जल्द से जल्द प्रस्तुत करो। ... इन सभी के साथ माँ जगदम्बिका ने भीषण युद्ध किया और एक-एक कर सभी दैत्यों को मृत्यु के घाट उतार दिया। तब शुम्भ और निशुम्भ क्रोध से तिलमिला उठे और उन्होंने अपने महापराक्रमी और मायावी दैत्य रक्तबीज को युद्ध क्षेत्र में भेजा। रक्तबीज कोई साधारण दैत्य नहीं था। ...
... किसी समय कठोर तप द्वारा उसने (रक्तबीज) भगवन शिव से बड़ा ही अद्भुत वरदान प्राप्त किया था। वह वरदान था ...
जब उस दैत्य के शरीर से रक्त की बूँद पृथ्वी पर गिरती, तब उसी के रूप तथा पराक्रम वाले दूसरे महादैत्य उत्पन्न हो जाते।
... उधर माँ ने भी अपने चक्र से उस पर प्रहार किया। ...
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देखते ही देखते असंख्य रक्तबीज आकार लेने लगे...
... माँ पर आस्था रखने वाले लोग इस वृत्तांत को माँ की विभिन्न लीलाओं में से मानकर इसे सहर्ष