बात बीते हफ्ते की है। रविवार का दिन था। ऑफिस की छुट्टी थी। सोचा, क्यों न आज अपनी मनपसंद डिश- 'डोसा' और 'नारियल चटनी' बनाई जाए। तो शुरू हुआ 'मिशन-डोसा'! झट से जाकर मैं मार्किट से ताज़ा पिसा डोसे का बैटर ले आई। आलुओं को उबालने के लिए माइक्रोवेव कर दिया। चटनी के लिए नारियल का पेस्ट बना लिया। फिर मैं बाकी मसलों को इकट्ठा करने लगी। अरे! कढ़ी-पत्ता तो मैं लाना ही भूल गई!
दरअसल, अपने किचन गार्डन में मैंने कढ़ी-पत्ते का एक पौधा रोपा हुआ था। इन दिनों मौसम अनुकूल था। इसलिए हल्के हरे रंग की पत्तियाँ भरे-पूरे गुच्छों में उग आई थीं। कढ़ी, साम्बर और अन्य साउथ इंडियन डीशिज़ के लिए मैं उन्हें तोड़ लिया करती थी। आज भी मैं सरपट बाहर गई और 10-12 पत्तियाँ तोड़ लाई। सरसों के दानों सहित मैंने पत्तियों का तड़का लगाया और डोसा चटनी का व्यंजन तैयार किया। वाकई में, कढ़ी-पत्ते ने डोसे के जायके में चार चांद लगा दिए थे। परिवार के सभी जनों को वह बहुत स्वादिष्ट लगा।
अगली सुबह... रोज़ की तरह मैं तैयार होकर ऑफिस के लिए घर से निकल रही थी। सोचा, जाने से पहले पौधों को पानी भी दे दूँ। पर यह क्या? कढ़ी-पत्ते का पौधा तो पूरा अस्त-व्यस्त पड़ा था। कल शाम तो बिल्कुल ठीक था। पर अब?... टूटी नन्ही टहनियाँ, टेढ़ा तना और नीचे बिखरे ढेर सारे पत्ते... मानो कोई भयंकर तूफान आया हो! पौधे की ऐसी दुर्दशा देखकर, आई वॉज़ इन शॉक! मैंने बिखरी हुई पत्तियों को इकट्ठा किया। तने को भी सीधा करने की कोशिश की। पर छोड़ते ही, वह पुनः पंगु सा झूल गया।...
एक तरह से मुझे अपने पौधे की टूटी-फूटी हड्डियों का ऑपरेशन करना पड़ा। इस सब की वजह से मैं 15 मिनट लेट हो चुकी थी। इसलिए द्रुत गति से मेट्रो स्टेशन की और दौड़ पड़ी। अभी तीसरी गली के मोड़ पर ही पहुँची थी कि मेरी नज़र मोटे बॉर्डर वाली बैंगनी रंग की साड़ी पहने कड़ी एक महिला पर गई।... पर ये सब नज़ारें मेरे आकर्षण केंद्र नहीं थे। कुछ और ही था, जिसने मेरे दौड़ते