शापिंग! शापिंग! शापिंग!... अनलिमिटिड शापिंग! कुछ ऐसा ही ज़माना आजकल है। खरीददारी के असीमित विकल्प ग्राहक के पास हैं। इसलिए आज व्यवसाय की दुनिया में ग्राहक को 'राजा' का दर्ज़ा दिया जाता है। उसे प्रसन्न रखना कंपनियों का एक उद्देश्य होता है। नहीं तो ग्राहक किसी दूसरे विकल्प पर जाने में देर नहीं लगाता। मार्केटिंग के क्षेत्र में इसी धारणा को एक सिद्धांत के रूप में पिरोया जाता है। यह सिद्धांत है- 'Customer Relationship Management (CRM)' अर्थात् 'ग्राहक सम्बन्ध प्रबंधन'। इस सिद्धांत को तीन चरणों में समझा जा सकता है-
1. 'Acquisition' यानी 'अर्जन करना!'
मतलब कि कंपनियों द्वारा आकर्षक योजनाएं बनाकर ग्राहक को अपना बनाना। अच्छा, आप बताइए कि अगर आपको नोकिया का स्मार्ट फोन और एप्पल फोन में से एक का चयन करना हो, तो आप कौन सा खरीदेंगे? निःसंदेह, आप तुरंत ही एप्पल को चुन लेंगे। ऐसा क्यों? क्योंकि ये दोनों ही (ऑर्डर क्वॉलिफायर) प्रोडक्ट्स तो हैं, पर 'ऑर्डर विनर' नहीं। 'ऑर्डर क्वॉलिफायर' माने वे मूलभूत सुविधाएँ, जो एक उत्पाद में होनी चाहिएँ। जैसे मोबाइल की ही बात करें, तो मार्किट में वीवो, मोटोरोला, सैमसंग, नोकिया, एप्पल आदि सभी विकल्प हैं। ये सभी 'ऑर्डर क्वॉलिफायर' फीचर्स पर खरे उतरते हैं। इन्हीं फीचर्स के कारण ये सब ब्रैंड आज भी खुद को बनाए रखने में कामयाब हैं।
लेकिन, फिर भी समृद्ध जन अक्सर एप्पल का ही चुनाव क्यों करते हैं? क्योंकि एप्पल में ' आर्डर विनिंग' फीचर्स भी होते हैं। 'आर्डर विनर' में वे सुविधाएँ भी होती हैं, जो उस उत्पाद को अन्य विकल्पों से अलग और बेहतर बनाती हैं। जैसे एप्पल की गुणवत्ता, डिज़ाइन और सुरक्षा तंत्र।
अतः कंपनियों को कामयाब होने के लिए 'ऑर्डर विनिंग' फीचर पर ध्यान देना होता है।
…क्या हैं अन्य दो चरण?
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