गुड़ी पड़वा के अमूल्य संदेश! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

गुड़ी पड़वा के अमूल्य संदेश!

फाल्गुन के पश्चात् चैत्र मास का आरम्भ प्रेम और सौहार्द की छटा बिखेरता है।प्रकृति भी पूर्ण रूप से प्रफुल्लित हो उठती है। परम सौन्दर्य का परिचय देती है। इस मौसम में सूर्य की मद्धम-मद्धम तपिश प्रकृति को सुनहरे रंग में रंगती है। वहीं रातें हल्की ठंडक को समेटे हुए वातावरण को सम शीतोष्ण करती हैं। इसी बेला में, चैत्र नवरात्रि के शुभारंभ 'नवसंवत्सर' पर 'गुड़ी पड़वा' का विशिष्ट पर्व मनाया जाता है।


चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भारतीय संस्कृति के नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। वहीं महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा त्यौहार के रूप में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। जैसे कि हमारी संस्कृति के हर पक्ष, हर पर्व में सामाजिक उद्देश्य व आध्यात्मिक रहस्य निहित हैं; वैसे ही गूढ़ तथ्य यह गुड़ी पड़वा का पर्व भी उजागर करता है। आइए, इसमें छिपे तथ्यों से अवगत होकर उनसे प्रेरणा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।


गुड़ी पड़वा क्या होता है?

सबसे पहले गुड़ी पड़वा के शाब्दिक अर्थ को जानते हैं। 'गुड़ी' अर्थात ध्वजा या विजय पताका। 'पाड़वा' शब्द में 'पाड' माने पूर्ण और 'वा' मतलब वृद्धि करना। तो 'पाड़वा' का अर्थ हुआ- परिपूर्णता की ओर बढ़ना! मान्यता है कि इस नवसंवत्सर के दिन प्रभु श्री राम ने दुराचारी किष्किन्धा नरेश बाली का वध किया। इसी उपलक्ष्य में घर-घर में गुड़ी-ध्वजाएँ यानी विजय पताकाएँ फहराई गईं। तभी से यह दिन गुड़ी पड़वा के नाम से विख्यात हुआ। और तब से ही इस दिवस महाराष्ट्र में घरों के आँगन में गुड़ी खड़ी रखने की प्रथा आरम्भ हो गई। इसके अतिरिक्त मराठी भाषियों के अनुसार इसी दिन छत्रपति शिवाजी ने हिन्दू पदशाही का भगवा विजय ध्वज फहराकर हिंदवी साम्राज्य की नींव रखी थी।


गुड़ी बनाने हेतु एक डंडे पर साड़ी व अन्य पीले, लाल, केसरिया रंग के कपड़े लपेट दिए जाते हैं। डंडे के ऊपरी छोर पर ताँबा, चाँदी या पीतल का कलश स्थापित किया जाता है। कलश पर अंजन से नेत्र, नाक, मुँह की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। साथ ही गुड़ी को पुष्पों के हार से सुसज्जित किया जाता है। इसके बाद शक्कर से बनी आकृतियों को माला में पिरोकर गुड़ी को पहनाया जाता है। सुहागन संबंधी अन्य प्रसाधनों से भी इसे अलंकृत करते हैं। फिर इस गुड़ी को घर के आँगन में खड़ा कर दिया जाता है। गुड़ी घर में सम्पन्नता व ऐश्वर्य के भाव को दर्शाती है। यह पर्व मनुष्य को नैतिक मूल्यों व सुसंस्कारों की सौगात भी देता है। आइए' जानते हैं किस प्रकार!


इसमें कोई संदेह नहीं कि सनातन-पुरातन भारतीय संस्कृति के प्रत्येक पर्व में प्रतीकात्मक रूप से गूढ़ तथ्य छिपे हैं। भारतीय उत्सवों का हर पक्ष मानव के लिए हर स्तर पर अनमोल प्रेरणाओं को समेटे हुए है।


गुड़ी पड़वा के नैतिक, वैज्ञानिक व आध्यात्मिक संदेश को जानने के लिए पढ़िए मार्च'18 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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