हर बुराई पर नए प्रकार का प्रहार! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

हर बुराई पर नए प्रकार का प्रहार!

ज्वालामुखी... भूकंप... तूफान... सुनामी... ये शब्द सुनते ही आपके मानसपटल पर कैसी छवि उभरती है? तबाही... नुकसान... भय... हाहाकार... शायद कुछ-कुछ ऐसी ही न!  लेकिन अगर आज हम आपसे यह कहें कि भूकंप के झटके भी हमारे लिए मददगार सिद्ध हो सकते हैं-  हर उस स्तर पर जहाँ-जहाँ हम साधक-पथ पर अटके हैं, तो? बहुत अधिक संभावना है कि आप को हैरानी हो। परन्तु यह सच है कि इनसे होने वाले विध्वंस में हमारे साधक जीवन के स्वास्थ्य हेतू बेमिसाल सूत्र निहित हैं। बस, देखने-समझने का सही दृष्टिकोण चाहिए। यदि नज़रिया बढ़िया है, तो फिर इंसान  बुराइयों में से भी अपने लिए अच्छाई चुन लेता है। ठीक जैसे संत रबिया शैतान में भी अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ता और अडिगता के गुण देख लेती थीं।

तो चलिए, आज हम इतिहास के पन्नों पर दर्ज़ कुछ भूकंपों, तूफानों, सुनामी इत्यादि की घटनाओं के बारे में जानते हैं। किस तरह इन्होंने नए-नए तरीकों द्वारा मानव समाज को अस्त-व्यस्त कर दिया। आज वही नए-नए अंदाज़ अपनाकर हम किसी जीव के जीवन में नहीं, अपने अंतर्घट में बैठी बुराइयों पर धावा बोल दें। आंतरिक विचारों की बसी-बसाई घर-गृहस्थी उखाड़ फैंके। ऐसा करने पर यकीन मानिए हमारी हस्ती बिगड़ेगी नहीं, बल्कि सदा के लिए संवर जाएगी। साधकता की डगर पर हमारी कली मुरझाएगी नहीं, बल्कि पूर्ण रूप से खिल जाएगी।

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जापान के लोग हमेशा भूकंप झेलने को तैयार रहते हैं। इसी सावधानी के चलते, सन् 2011 की 11 मार्च को भी वे तैयार थे। जब रिक्टर स्केल पर 9 तीव्रता वाले भूकंप ने उन्हें हिलाया, तब इतने तेज़ झटकों के बावज़ूद जापान के नागरिक सँभले रहे। हमेशा की तरह, मामूली से नुकसान के बाद सब सामान्य हो गया। पर भूकंप ने सेर पर सवा सेर होने की तरकीब अपनाई। देखते ही देखते, आधे घंटे के अंदर-अंदर, उसने अपने तेज़ झटकों से से एक महाघातक सुनामी को जन्म दे डाला। वो जापान 9 रिक्टर की तीव्रता वाले भूकंप से भी काँपा नहीं, चद मिनटों में सुनामी से पूरी तरह तबाह हो गया। बीस हज़ार से भी ज़्यादा लोग या तो मौत के घाट उतर गए या अपनों से बिछुड़ कर लापता हो गए। इस आपदा ने विनाश की ऐसी दास्तां रची कि 11 मार्च, 2011 की तारीख महा-विनाशक के रूप में दर्ज़ हो गई। इस दुर्घटना के बाद, पूरे विश्व ने यह मान लिया- चाहे बचने की कितनी भी तैयारी की हो; फिर भी इन आपदाओं के कहर से बच पाना नामुमकिन है।

बेशक बाहरी स्तर पर यह चिंता का विषय है। कैसे? पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए मई'18 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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