विविध परम्पराओं के धागे ऐसे ताने-बाने बुनते हैं, जो विश्व को रंग-बिरंगा मिज़ाज़ देते हैं। हमें बाँधती ये परम्पराएँ और प्रथाएँ हर देश में बदलती जाती हैं। कई स्थानों पर तो ऐसे आश्चर्यपूर्ण रीति-रिवाज़ देखने को मिलते हैं... कि क्या कहें बस! विभिन्न सभ्यताओं की कुछ प्रजातियों की परम्पराएँ सामान्य से बिल्कुल हट के हैं। उन्हें जानकर आप अवश्य ही दाँतों तले अंगुली दबा लोगे। तो आइए, इस लेख में कुछ ऐसे ही अजीबोगरीब रिवाज़ों और परम्पराओं से रू-ब-रू होते हैं।
प्रतिदिन एक घंटा रोना अनिवार्य!
चीन के वूलिंग पहाड़ों (Wuling Mountains) में लगभग 80 लाख जनसंख्या निवास करती है। ये तुजिया लोग लड़की के विवाह के समय एक विचित्र सी परम्परा (Zuo Tang) की पालना करते हैं। कन्या को शादी के एक माह पूर्व से ही रोज़ दिन में एक घंटा रोना होता है। जब लड़की को रोते हुए दस दिन व्यतीत हो जाते हैं, तो उसकी माँ भी इस रोने-धोने के अभियान में सम्मिलित हो जाती है। मतलब कि अब माँ-बेटी दोनों मिलकर रोते हैं- हर दिन एक घंटा। अब जब लड़की और उसकी माँ को यह रीत निभाते हुए 10 दिन हो जाते हैं, तो कन्या की दादी भी उनके साथ आँसू बहाने में शामिल हो जाती है। इस प्रकार महीने के अंत तक परिवार की सभी स्त्रियाँ विवाह समारोह से पूर्व खूब रोती हैं। रोने के साथ-साथ एक पारम्परिक 'Crying Marriage Dong' भी गाया जाता है। है न हैरान करने वाली प्रथा?
आप अवश्य ही सोच रहे होंगे कि आखिर तुजिया लोग इतनी अजीबो-गरीब परम्परा क्यों निभाते हैं? दरअसल, इन लोगों की मान्यता है कि घर की महिलाओं के रोने की आवाज़ें मिलकर सामूहिक गीतों का आभास देती हैं। ये धुनें शादी के अवसर पर आँसुओं में भीगे मधुर संगीत की प्रतीक हैं।
प्रेरणा पुष्प- अगर पार्थिव तौर पर देखा जाए, तो रुदन का स्वर कभी शुभ व मधुर नहीं होता, बल्कि दिल में दर्द का अहसास देता है। रोना-दोन मतलब दुःख, पीड़ा या अवसाद! इसलिए तुजिया जाति की यह प्रथा, वह भी विवाह समारोह से पूर्व- गले के नीचे नहीं उतरती। पता नहीं, तुजिया लोगों ने इस परम्परा को आकार क्यों दिया? पर यदि हम थोड़ी सूक्ष्म दृष्टि से देखें, तो दो प्रेरणाएँ हाथ लगती हैं।
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