बेशक पाँव में छाले हों, पर साँसे रखो बुलन्द! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

बेशक पाँव में छाले हों, पर साँसे रखो बुलन्द!

कुछ वर्ष पूर्व, एक धारावाहिक आया था। उसकी एक कड़ी में 'नारी' के लिए एक गीत बनाया गया था। उस गीत के कुछ प्रेरणादायक शब्द यहाँ प्रस्तुत हैं-
            दीवारें ऊँची हैं,
            गलियाँ हैं तंग
            लम्बी डगर है,
            पर हिम्मत है संग।
            पाँव में छाले हैं, 
             साँसे बुलंद
             लड़ने चली हूँ
             आज़ादी की जंग...
निस्संदेह, ये बोल नारियों के लिए जागृति का आह्वान हैं। ऐलान है उस पुरुष प्रधान समाज के लिए जो स्रियों को कुछ नहीं समझते। क्योंकि ये भाव उन महान नारियों के हैं, जिन्होंने समय-समय पर समाज को महत्तवपूर्ण योगदान दिया है। तो आइए, आज कुछ ऐसी ही विलक्षण महिलाओं के बारे में जाने।

जैनी लुइज़
बात सन् 1800 के आसपास की है। उस समय न्यूयॉर्क में आर्किटेक्चर (वास्तुकला) केक् क्षेत्र में केवल पुरुषों को ही लिया जाता था। पर यह इतिहास तब बदला, जब एक छोटी-सी बच्ची लुइज़ को उनके सहपाठी ने चिढ़ाते हुए बोला- 'लुलु (लुइज़), लड़कियाँ कभी आर्किटेक्ट नहीं बन सकतीं।'

बस इस कटाक्ष को लुइज़ ने ऐसी चुनौती के रूप में लिया कि आज वे अमेरिका की पहली महिला वास्तुकार के रूप में जानी जाती हैं। पर यह खिताब उन्हें आसानी से नहीं मिला। इसमें शामिल थी उनकी मेहनत, उनकी लगन और उनका दृढ़ विश्वास। सोचिए, क्या समां रहा होगा जब लुइज़ ने वेस्टर्न एसोसिएशन ऑफ आर्किटेक्ट्स के बोर्ड के सामने, जिसमें केवल पुरुष ही थे, यह प्रश्न खड़ा किया होगा- 'महिलाएँ आर्किटेक्चर के क्षेत्र में क्यों नहीं आ सकतीं?' फिर आर्किटेक्ट बनने की अपनी प्रबल इच्छा ज़ाहिर की होगी। वास्तुकला के क्षेत्र में उनके उत्साह और रचनात्मक शक्ति को देखते हुए बोर्ड सदस्य उन्हें 'न' कहने की हिम्मत न कर सके। लुइज़ को सर्वसम्मति से आर्किटेक्चर क्षेत्र का सदस्य चुन लिया गया। 

धन्यवाद, जैनी लुइज़! आज आपके ही कारण अनेक महिलाएँ वास्तुकला के क्षेत्र में सफलता के शिखरों को छू रही हैं। साथ ही, आपकी हिम्मत और लगन को नमस्कार! उसके चलते ही आपने इस क्षेत्र में निपुणता पाई। आज भी आपके द्वारा डिज़ाइन किया गया न्यूयॉर्क स्थित Hotel Lafayette उत्कृष्ट कृति में गिना जाता है। सभी को प्रेरणा देता है कि स्त्रियाँ आर्किटेक्चर में पुरुषों से कम नहीं हैं। इतना ही नहीं, लुइज़ ने जो एक स्कूल बिल्डिंग का नक्शा बनाया था उसमें बेहतरीन सुरक्षा के इन्तज़ाम किए थे। ये सुरक्षा के उपाय इतने उत्तम थे कि यह डिज़ाइन काफी समय तक वास्तुकला प्रशिक्षण की किताबों में शामिल रहा।

सन् 1893 में प्रकाशित हुई एक पुस्तक थी- 'ए वचमन ऑफ द सेंचुरी'। उस पुस्तक में लुइज़ के प्रेरणादायक जीवन को कलमबद्ध किया गया।फिर सभी नारियों का आह्वान किया गया- 'हे नारी! उठो और जागो! इस समाज में तुम्हें अपना इतिहास स्वयं रचना होगा।'

ऐसी ही अन्य प्रेरणादायक नारियों के विषय में जानने के लिए पढ़िए जुलाई'2018 माह की अखण्ड ज्ञान हिन्दी मासिक पत्रिका।

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