वे युवा भी थे और सुशिक्षित भी! बड़ा आसान था उनके लिए माया का चयन करना। अपनी क्षमता व ऊर्जा का नाम व धन-वैभव बटोरने में लगा देना. परंतु उन्होंने चुना प्रेय (प्रिय) नहीं, श्रेय (श्रेष्ठ) मार्ग! धारण किया माँ भारती को बेड़ियों से मुक्त कराने का वृहद संकल्प! इस लक्ष्य के लिए होम कर दिया अपना तन, मन, धन, परिवार और यहाँ तक कि जीवन! आइए, आज कुछ ऐसे ही महान स्वाधीनता सेनानियों के जीवन का लघु-दर्शन करें।
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गोपाल कृष्ण गोखले-
स्वाधीनता आंदोलन के प्रारम्भिक नेता!
महाराष्ट्र के एक स्कूल में एक दिन अध्यापक ने बच्चों से प्रश्न किया- 'अगर तुम्हें मार्ग में एक हीरा पड़ा दिखे, तो तुम उसका क्या करोगे?' बच्चों के उत्तर कुछ इस प्रकार थे-
पहला- मैं उसे बेचकर गाड़ी खरीदूंगा।
दूसरा- मैं उसे बेचकर अपनी सेवा के लिए खूब सारे नौकर रखूँगा।
तीसरा- मैं हीरे को बेचकर विदेश यात्रा करूँगा।
लेकिन उसी कक्षा में उपस्थित गोपाल नामक बालक बोला- 'मैं उसके मालिक का पता लगाकर उसे हीरा लौटा दूँगा।'
गोपाल के जवाब को सुनकर अचंभित हुए अध्यापक बोले- 'यदि बहुत कोशिशों के बावजूद भी उसके मालिक का पता न लग पाया तो...'
गोपाल- तो मैं उस हीरे को बेच लूँगा. फिर उस प्राप्त धनराशि को देश कि सेवा में लगा दूँगा।
जवाब सुनकर शिक्षक बेहद गद्गद हो गए. अगले दिन टीचर ने गोपाल से गणित का एक अत्यंत कठिन प्रश्न पूछा। गोपाल ने उस प्रश्न का सही उत्तर दे दिया। शिक्षक ने खुश होकर गोपाल को एक उपहार दिया. पर गोपाल ने शिक्षक के हाथ में भेंट वापिस रखते हुए कहा- 'इस पुरस्कार का हकदार मैं नहीं हूँ। इसका उत्तर मुझे साथ बैठे विद्यार्थी ने बताया था।' शिक्षक गोपाल की सत्यनिष्ठा देखकर बेहद प्रभावित हुए। अध्यापक ने वह उपहार पुनः गोपाल को थमाते हुए कहा- 'अब तुम इसके सच्चे अधिकारी हो गए हो, क्योंकि तुमने सत्य की रक्षा की है। सच्चाई को प्रकट करने के लिए जो साहस चाहिए, वह तुममें है।'
यही गोपाल आगे चलकर गोपाल कृष्ण गोखले के नाम से विश्वभर में प्रख्यात हुए, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी। दरअसल, भारत को स्वतंत्रता किसी एक प्रकार के रास्ते पर चलकर या संघर्ष का कोई एक रूप अपनाकर नहीं मिली। इस स्वाधीनता आंदोलन के विभिन्न अंग रहे- उदार, उग्र राष्ट्रवादी, क्रांतिकारी, अहिंसक आंदोलनकारी आदि। पर इस राष्ट्रीय आंदोलन के प्रारम्भिक नेता उदारवादी ही थे, जिनमें से प्रमुख रहे गोपाल कृष्ण गोखले। अंग्रेज़ शासनतंत्र का विरोध इन्होनें संवैधानिक रूप से किया। स्वराज्य के लक्ष्य को भेदने के लिए वे आजीवन अटूट निष्ठा, तप, त्याग, लगन, अथक परिश्रम से लगे रहे।
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