पर नारी मातृवत! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

पर नारी मातृवत!

पर नारी पैनी छुरी, मत कोई वालों अंग।

रावण के दस सिर गए, पर नारी के संग।।


हमारे अंतर्जगत में राम भी हैं और रावण भी है। राम परमात्मा हैं, आत्मा के रूप में हमारे भीतर स्थित हैं। राम का अंतर्जगत में जागरण ही ' धर्म' है। परन्तु यदि हमारे भीतर के राम सुषुप्त हैं, तो व्यक्तित्व में अधर्म का ही प्रतिफल दृष्टिगोचर होगा अर्थात् रावण का वर्चस्व रहेगा।
रावण अज्ञान का प्रतीक है। अज्ञान के कारण मानव में देहाभिमान और देहासक्ति की स्थिति बनी रहती है। अर्थात् मानव का स्वयं को देह मात्र ही समझना, इसलिए भोग पदार्थों, कामुकता व इंद्रियों के सुखों में लिप्त रहना-  यही अधर्म है।


आधुनिक वर्ग कहता है- ' तो इसमें हानि क्या है? यह तो स्वाभाविक है, प्राकृतिक है।' परंतु अध्यात्मविदों का  दृष्टिकोण भिन्न है। संत कबीर ने उक्त दोहा कहा- ' पर नारी पैनी छुरी...

रावण के दस सिर गए...।' अर्थात् पर-नारी या पर-पुरुष का संग करने से, अमर्यादित काम-भाव से मानव के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का पतन होता है। उसकी ' स्थूल संपदा'-  धन, रिश्ते-नाते, मान-सम्मान इत्यादि तथा उसकी ' सूक्ष्म संपदा'-  मानवीय गुण, नैतिक मूल्य इत्यादि...

सब के सब लुट जाते हैं।


उक्त पद्य हमारा ध्यान रावण के जीवन व उसके जीवन के अप्रत्याशित अंत की ओर केन्द्रित करता है। ...



भारतीय संस्कृति में धर्मपत्नी की अवधारणा है। ' धर्मपत्नी' अर्थात् जिसके संग विधिवत विवाह संस्कार हुआ है। उसके अतिरिक्त हर नारी, ' पर नारी' है। सृष्टि के प्रथम राजा मनु बने, जिन्होंने समाज के आदर्श संचालन हेतु कुछ नियम प्रतिपादित किए। ऋषियों द्वारा रचित स्मृतियाँ इन्हीं सामाजिक नियमों का संकलन है। इन्हीं स्मृतियों की यह घोषणा है-  ' मातृवत् परदारेषु' अर्थात् दूसरे की स्त्री को माँ के समान मानना चाहिए।

परन्तु वर्तमान समय में समाज का मानचित्र इसके बिलकुल विपरीत है और यह गंभीर रूप से शोचनीय है। स्वतंत्र जीवनशैली के नाम पर युवा व आधुनिक वर्ग द्वारा विवाह परम्परा की अवमानना करना तथा लिव-इन, विवाहपूर्व एवं विवाहेत्तर जैसे अवैध संबंधों का अनुपालन करना- वास्तव में यह समाज व मानव के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का काम-वासना की सूक्ष्म बेड़ियों में जकड़ कर परतंत्र होना है। ...

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ऐसे में क्या करें? इस भौतिकता की अंधी दौड़ में दौड़ते हुए अपनी भावी पीढ़ी के लिए असुरोपनिषद की रचना करते चलें? या फिर रूककर चिंतन करें, प्रयास करें और समाज के उज्ज्वल भविष्य की आधारशिला तैयार करें?... जानने के  लिए पढ़िए दिसम्बर 2018 माह  की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका।

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