भक्तिकाल के सद्गुरु कबीर उत्तम कोटि के कवि भी थे। इन्होंने अपनी हर साखी, सबद, रमैनी, दोहे और वाणी से शिष्य समाज को चेताया, जगाया व प्रेरणा दी। पर सोचिए, यदि कबीर साहिब आज के तकनीकी और आधुनिक मंच पर आमंत्रित किए जाएँ, तो वे मॉडर्न समाज को कैसे प्रेरणा देंगे। उनके दोहों की क्या शब्दावली होगी, उनमें कैसे उदाहरण होंगे, आइए इसी की एक झलक लेते हैं...
कबीर जी का १५वीं सदी का दोहा-
गुरु धोबी सिख कपड़ा, साबू सिरजन हार।
सुरती सिला पर धोइए, निकसे ज्योति अपार।।
अर्थ- यदि शिष्य कपड़ा है, वह भी मैला; तो गुरु धोबी के समान हैं। जैसे धोबी शिला पर पटक-पटक कर कपड़े की मैल काटता है और उसका रंग निखार देता है। वैसे ही सुरत की कला सिखाकर यानी प्रभु से जुड़ने की सुमिरन कला देकर गुरु भी शिष्य के विकारों रूपी मैल को काट देते हैं और उसके भीतर आत्मा का प्रकाश जगमगाने लगता है।
कबीर जी का २१वीं सदी का दोहा-
शिष्य मन का सॉफ्टवेयर, विकारों के वायरस से जब हो बेहाल।
ब्रह्मज्ञान का एंटीवायरस ही हल, सद्गुरु जो करें इंस्टॉल (install)।।
अर्थ- यदि शिष्य कम्प्यूटर है, जिसके मन रूपी सॉफ्टवेयर को विकारों का वायरस लगा है; तो गुरु प्रदत्त ब्रह्मज्ञान एंटीवायरस के समान है। जैसे एंटीवायरस हमारे कम्पयूटर की हर फाइल को स्कैन करता है और जहाँ-जहाँ वायरस होते हैं, उन्हें डिलीट कर देता है। वैसे ही, गुरु भी शिष्य को ज्ञान-प्रकाश प्रदान करते हैं, जिससे उसके मन में छिपा हर वायरस प्रकट होकर डिलीट हो जाता है।
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