कुछ सितारे आकाश में जगमग कर अंधेरे से लड़ते हैं, तो कुछ ज़मीन पर उतर कर अज्ञानता रूपी कालिमा को हरते हैं! जो तारे धरा पर ज्ञान का प्रकाश लेकर आते हैं, उन्हें 'संत' कहा जाता है। आकाश के तारे तो फिर भी टूट जाते हैं, पर यह जगत के सितारे विषम से विषम परिस्थिति में भी नहीं टूटते। ऐसा ही एक सितारा शतकों पूर्व यूनान देश में चमका था, जिसके ओजस्वी विचार आज भी सारे विश्व को आलोकित कर रहे हैं। आपने सही अनुमान लगाया... हम बात कर रहे हैं संत सुकरात की।...
डॉ. अब्दुल कलाम की वार्ता संत सुकरात से!
अप्रैल, सन् 2007 की बात है। अपने राष्ट्रपति काल में, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम यूनान (ग्रीस) गए थे। वहाँ उन्होंने ग्रीस सरकार के समक्ष एक इच्छा प्रकट की। वे एक बार उस स्थान पर जाना चाहते थे, जहाँ संत सुकरात को ज़हर का प्याला दिया गया था। उन्होंने उस कुर्बानी स्थल के दर्शन करने की अभिलाषा ज़ाहिर की। दरअसल, कलाम साहब ने संत सुकरात के बारे में बहुत कुछ पढ़ा और सुना हुआ था। इसलिए वे उनसे बहुत प्रभावित थे।
जब वे संत सुकरात की गुफा में पहुँचे, तो उन्होंने कुछ पल के लिए एकांत माँगा। सबके चले जाने के बाद, कलाम साहब काफी देर तक वहीं खड़े रहे। संत सुकरात के महान त्याग को याद कर वे भावुक हो गए। कलाम साहब स्वयं लिखते हैं- 'उस समय मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं किसी और ही कालखंड में पहुँच गया हूँ। फिर एकाएक उस गुफा के सन्नाटे को चीरते हुए मुझे कुछ शब्दों की गूँज सुनाई दी।...'
और इसी के साथ आरंभ हुई उनके और संत सुकरात के बीच एक मूक वार्ता...
क्या थी वह वार्ता? संत सुकरात के विचारों से महान प्रेरणाओं को लेकर हम अपने जीवन को कैसे रोशन कर सकते हैं? पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए आगामी फरवरी' 2020 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!