श्री स्वामी रामतीर्थ जी के समक्ष एक बार एक युवक ने अपनी जिज्ञासा रखी। उसने कहा- 'स्वामी जी, मैंने आपके बहुत से व्याख्यान सुने हैं। उनमें अक्सर आप कहते हैं कि हम उस परमात्मा के अंश हैं जो अथाह ज्ञान राशि के स्रोत हैं। अतः आपके अनुसार हमारे अंदर भी वही ज्ञान कोश समाहित है। तो फिर हमें क्यों हर कार्य को करने या सीखने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है? क्यों एक संगीतकार को घंटों रियाज़ करने के बाद संगीत का ज्ञान होता है? क्यों एक लेखक को अपने मस्तिष्क की हर एक तंत्रिका को निचोड़ कर कागज़ पर शब्दों को उतारना पड़ता है? क्यों एक मूर्तिकार अनवरत एक ही शिला पर महीनों हथौड़े व छैनियों का प्रहार करने के बाद ही एक सुंदर कृति का निर्माण कर पाता है?... और मुझ जैसे विद्यार्थी को क्यों साल दर साल इतनी मेहनत कर शिक्षा हासिल करनी पड़ती है? स्वामी जी, जब सारा ज्ञान हमारे भीतर पहले से ही है, तो फिर हमें इतनी मेहनत क्यों करनी पड़ती है?'
स्वामी रामतीर्थ जी ने उस युवक को उत्तर स्वरूप एक कथा सुनाई...
क्या थी वह कथा? कैसे उस युवक को स्वामी रामतीर्थ जी ने उसके सभी प्रश्नों का समाधान दिया? जानने के लिए पढ़िए आगामी फरवरी'2020 माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!