कोरोना महामारी के चलते ...इस लेख के अंतर्गत गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी का एक पर्यावरणविद् के साथ हुआ संवाद सारांशत: प्रस्तुत है। उस पर्यावरणविद् ने श्री महाराज जी से जिज्ञासा की थी कि पृथ्वी पर एक उज्ज्वल काल था, जब हर ओर शान्ति गीत गुँजायमान थे। ...पर आज क्यों यह शांति खण्ड-विखण्ड और भंग दिखाई देती है?... ममता से हमें अन्न-धान्य परोसने वाली, सुहावनी ट्टतुओं से सहलाने वाली प्रकृति माँ आखिर आज क्यों रौद्ररूपा या संहारक चंडिका बन गई है? इस जिज्ञासा के प्रत्युत्तर में गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ने प्रकृति और व्यक्ति के परस्पर सम्बन्ध को दार्शनिक और वैज्ञानिक शैली में बड़ी गूढ़ता से उजागर किया था। गुरुदेव के ये विचार वर्तमान समय के लिए न केवल प्रासंगिक हैं, अपितु विचारणीय और अनुकरणीय भी हैं। अतः आइए इनसे सामयिक मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं।
पर्यावरणविद्- महाराज श्री, विश्व भर के पर्यावरण विभागों के आँकड़े पिछले कुछ वर्षों से मुँह खोल कर बता रहे हैं कि प्रकृति विध्वंस की रक्तिम कहानी रचने लगी है। ...सन् 1980 तक केवल 100 प्राकृतिक आपदाएँ हमारे पास दर्ज थीं। पर सन् 2000 से इस आँकड़े में जबरदस्त रूप से 3 गुणा उछाल आया है। इस बारे में, विश्व के चिंतक अपनी-अपनी राय दे रहे हैं। पर मैं आपसे जानना चाहता हूँ, यह सब क्या है और क्यों हो रहा है?
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श्री महाराज जी के इस गूढ़ प्रेरणादायी संवाद को पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए मई'२० माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!