8 जुलाई 2004! दैनिक जागरण समाचार पत्र के देहरादून (उत्तराखंड) संस्करण के विशेष संवाददाता लक्ष्मी प्रसाद पंत को एक खबर मिली। उन्हें पता चला कि केदारनाथ मंदिर के ठीक ऊपर स्थित चौराबाड़ी हिमनद पर हिमनद विशेषज्ञों का एक दल परीक्षण कर एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है। जिज्ञासावश वे तुरन्त केदारनाथ धाम से 6 किलोमीटर दूर स्थित चौराबाड़ी हिमनद पर स्थित झील के पास पहुँचे। उन्होंने देखा कि हिम विशेषज्ञ उस झील की निगरानी के लिए यन्त्र लगा रहे हैं। तब वहाँ उपस्थित वरिष्ठ वैज्ञानिक से उन्होंने प्रश्न किया- ‘झील का जलस्तर नापने और हिमनद के अध्ययन का क्या कारण है?’
वैज्ञानिक ने कहा- ‘मंदिर के ठीक ऊपर होने के कारण चौराबाड़ी झील केदारनाथ से सीधे जुड़ा हुआ है। यदि कभी झील का जलस्तर खतरे से ऊपर जाता है, तो केदारनाथ मंदिर और आस-पास के क्षेत्रें में तबाही आ सकती है।’
संवाददाता- क्या इतना पुराना मंदिर भी झील के सैलाब में बह सकता है?
वैज्ञानिक- हाँ, यह संभव है!...यदि झील का स्तर बढ़ा, तो हिमस्खलन के साथ मिलकर यह बम फटने से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है।
संवाददाता- इतना खतरा! फिर तो काफी दिनों से निगरानी चल रही होगी?
वैज्ञानिक- हाँ, 2003 से।
…
2 अगस्त, 2004 को यह समाचार जब दैनिक जागरण समाचार पत्र में छपा तो चारों ओर हड़कम्प मच गया। ...धीरे-धीरे बात आई-गई हो गयी। झील का जलस्तर बढ़ता गया और केदारनाथ मंदिर के आस-पास बहुत सारे अवैध, अनियमित और अव्यवस्थित निर्माण होते गए।
नौ साल बाद, 16 जून 2013…
…क्या हुआ था इस दिन??? …
... 16 जून को केदारनाथ में हुई इस त्रासदी के 7 वर्ष पूरे हो जाएँगे। वर्तमान परिस्थितियों को देखकर तो यही लगता है कि इससे हमने कुछ नहीं सीखा और आने वाले समय में हम इससे भी ज्यादा भयानक और विनाशकारी आपदाओं को आमंत्रण दे रहे हैं। पूरी मानव सभ्यता को खतरे में डाल रहे हैं। कैसे?...
…आज कोरोना महामारी से पूरे विश्व में हाहाकार मचा हुआ है।
…क्या कुछ सीख पाएँ इससे हम? क्या हम चेत पाएँ या समाप्त होने के लिए तैयार हैं? आत्म-मंथन करने के लिए पूर्णतः पढ़िए जून'२० माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका में!