हे अंतर्यामी आशुतोष! आपको शत-शत नमन! | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

हे अंतर्यामी आशुतोष! आपको शत-शत नमन!

तुझसे भला क्या छिप पाएगा, तुम तो अंतर्यामी हो,

बिन माँगे सब देने वाले, तुम तो प्रभु महादानी हो।

अपनापन तेरे जैसा कहीं और नहीं मिल पाएगा,

 तेरे निश्चल स्नेह को पाकर जीने का ढंग आएगा।

सचमुच! कितनी गहरी और सच्ची हैं, गुरुदेव द्वारा प्रेरित ये पंक्तियाँ! इनकी गहराई और सच्चाई को गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्यों ने पल-पल अनुभव किया है। अच्छा आप बताइए, क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आपने कोई बात नहीं हो, बिल्कुल स्पष्ट कही हो- लेकिन सुनने वाले ने उसे गलत या कुछ अलग ही समझ लिया हो?  संसार में तो ऐसा हर दूसरे दिन होता ही रहता है... अब जब हमारे शब्दों तक को संसार ठीक से पकड़ नहीं पाता, फिर मन के भाव या अनकही बात समझ पाने का तो सवाल ही नहीं उठता।

किन्तु अब यही कसौटी सद्गुरु के संदर्भ में आज़मा कर देखिए... आहा! यहाँ सुनने-सुनाने का, समझने-समझाने का आप एक अनोखा अंदाज पाएँगे! जितना करीब से शायद आप खुद को भी नहीं समझ पाते, उससे भी ज़्यादा नज़दीक आप गुरु को खड़ा पाएँगे! तभी तो भक्त उन्हें ...कहते हैं वो सत्ता जो सर्वव्यापी, सर्वसमर्थ, सर्वशक्तिमान तो होती ही है। साथ ही, उसकी दिव्य अंतर्यामिता का भी भक्त हरपल अनुभव किया करते हैं। आज गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के भक्त-शिष्यों की टोली आपके साथ अपने ऐसे ही कुछ खूबसूरत अनुभव साँझा करने आई है। ...सच कहते हैं- आप सुनते सुनते भले ही थक जाएँ, लेकिन सुनने वालों के अनुभव खत्म नहीं होंगे।

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इन सभी अनुभवों को पूर्णतः जानने के लिए पढ़िए जुलाई'२० माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!

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