वर्तमान में, पावन-पुनीत ग्रंथ रामायण के विश्व भर की विभिन्न भाषाओं में लगभग 300 संस्करण पाए जाते हैं। ऐसे में, यदि हम आपसे पूछें कि भगवान श्रीराम के चरित्र पर लिखा हुआ इनमें से प्राचीनतम ग्रंथ कौन सा है? तो प्रत्युत्तर में समवेत स्वर में ‘वाल्मीकि रामायण' ही मुखरित होगा। कारण कि त्रेतायुग में वाल्मीकि जी प्रभु श्री राम के ही समकालीन थे। कहा जाता है कि माँ सीता के उनके आश्रम में आने से पूर्व ही वे रामायण की रचना कर चुके थे।
पर आज हम आपके समक्ष एक ऐसा तथ्य रखेंगे, जिससे शायद मुट्ठी भर लोग भी परिचित नहीं हैं। वह यह कि रामायण काल में आदिकाव्य कहे जाने वाला ग्रंथ “वाल्मीकि रामायण' ही नहीं, श्री राम जी के चरित्र पर एक और ग्रंथ लिखा गया था। उसका नाम था- 'हनुमद् रामायण’ और इसके रचियता थे- परम रामभक्त 'हनुमान'।...
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...पर फिर यह ‘हनुमद् ग्रंथ’ कहाँ और कैसे लुप्त हो गया?
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