एक पाश्चात्य दार्शनिक ने समाज का मनोविज्ञान समझाते हुए एक बार कहा था- '...विज्ञान विज्ञान है। अध्यात्म अध्यात्म है। दोनों का संगम या समन्वय कभी नहीं हो सकता।' बढ़ते समय के साथ हम वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में तो बहुत आधुनिक होते गए, पर कहीं न कहीं इस रूढ़िवादी धारणा की छाप अब भी हमारे मानस पर छपी हुई है। इसी मनोविज्ञान का खंडन करते हुए कई विद्वानों ने अध्यात्म व विज्ञान के समन्वय पर पुस्तकें लिखीं। कई शोधकर्ताओं ने तर्कपूर्ण रिसर्च पेपर प्रकाशित किए। परन्तु इस क्रम में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की कर्म-साधना क्रांतिकारी रही है। श्री महाराज जी ने कागज़ और कलम उठाकर शोधपत्र नहीं लिखे, अपितु जीते-जागते मानवों के जीवन को ही अपनी शोध-शाला बना लिया। अपने शिष्यों के मन पर ऐसी रिसर्च की, उनके चरित्र का ऐसा गठन किया कि आज वे जीवंत शोध-पत्रों या आविष्कारों के रूप में समाज के समक्ष खड़े हैं, जिन्हें आप कह सकते हैं-‘Spiritual Scientist-आध्यात्मिक वैज्ञानिक!' ये शिष्य गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के ऐसे आविष्कार हैं, जिनका जीवन अध्यात्म की गहराई और विज्ञान की ऊँचाई- दोनों का अद्भुत संगम है। …ऐसी ही एक प्रतिभाशालिनी साध्वी डॉ. शिवानी भारती जी…गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की प्रचारक शिष्या हैं।
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… उनके जीवन के वे कौनसे अद्भुत प्रसंग थे जिन्होंने उन्हें अध्यात्म की “साधिका' और विज्ञान की 'शोधिका' बनाया, पूर्णत: जानने के लिए पढ़िए दिसम्बर’२० माह की हिन्दी अखण्ड ज्ञान मासिक पत्रिका!