क्या सच में 'राहु' व 'केतु' है? | Akhand Gyan | Eternal Wisdom

क्या सच में 'राहु' व 'केतु' है?

श्रीमद्भागवत महापुराण में समुद्र मंथन की गाथा उल्लिखित है। समुद्र मंथन का मुख्य उद्देश्य था, अमृत की प्राप्ति। इसी हेतु देवताओं व असुरों ने आपस में संधि कर एक साथ समुद्र मंथन करने का निर्णय लिया। नागराज वासुकि को नेती (रस्सी) बनाकर मंदराचल पर लपेटा गया। फिर पूर्ण उत्साह व आनंद के साथ मंथन का कार्य प्रारंभ किया गया।

 

...सबसे पहले समुद्र से हलाहल निकला। इससे चहुँ ओर त्राहि-त्राहि मच गई। ...समस्त सृष्टि के कल्याण हेतु भगवान आशुतोष ने इसे ग्रहण किया और अपने कंठ में इसे स्थित कर नीलकंठ कहलाए। पुनः मंथन कार्य प्रारंभ हुआ। मंथन से अनेक रत्न, कामधेनु, कल्पवृक्ष इत्यादि निकले। अन्ततः भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत कलश लिए प्रकट हुए। अमृत कलश देखते ही देव-असुरों की संधि जैसे छूमंतर हो गई। दोनों में अमृत प्राप्त करने की होड़ लग गई। इसके निवारण हेतु भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। ...इसी बीच दैत्य स्वर्भानु को आभास हुआ कि दानवों को छला जा रहा है। वह देवता का वेश बनाकर चुपके से सूर्य और चन्द्र देव के मध्य जाकर बैठ गया। अमृत प्राप्त करने में सफल भी हो गया। पर तभी चन्द्र व सूर्य देव ने उसको पहचान लिया। ...

...इससे पहले कि स्वर्भानु अमृत कंठ से अंदर निगल पाता, भगवान ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।

... स्वर्भानु से कैसे जुड़ा राहु-केतु?... क्या है चन्द्र और सूर्य ग्रहण के पीछे की कथा?... ग्रंथों और विज्ञान

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