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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक दिव्य गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा से 9 से 15 जून 2024 तक सेक्टर-16, रोहिणी, नई दिल्ली में सात दिवसीय भगवान शिव कथा का आयोजन किया गया। कथा का उद्देश्य भक्तों को 'शिवत्व' के वास्तविक अर्थ से परिचित कराना था, तथा 'शिवत्व' की दिव्य स्थिति प्राप्त करने के शाश्वत मार्ग और तकनीक से लोगों को अवगत कराना था। कार्यक्रम की शुरुआत रुद्रीपाठ और वैदिक मंत्रों के जाप के साथ की गई। कार्यक्रम में सम्मानित अतिथियों सहित हज़ारों श्रद्धालुओं ने अपनी बहुमूल्य उपस्थिति दर्ज़ कराई।

Bhagwan Shiv Katha Ignited True Essence of Shivatva in Rohini, New Delhi

कथा वक्ता, डीजेजेएस प्रतिनिधि एवं दिव्य गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य डॉ. सर्वेश्वर जी ने 'ब्रह्मज्ञान' की शाश्वत तकनीक के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि भगवान शिव की तीसरी आंख भी ब्रह्मज्ञान द्वारा अंतर्जगत में ईश्वर साक्षात्कार की ओर इशारा करती है। पूर्ण गुरु द्वारा प्रदत्त ‘ब्रह्मज्ञान’ की शाश्वत तकनीक के माध्यम से ही मनुष्य की तीसरी आंख अर्थात् दिव्य दृष्टि का खुलना संभव है। इस नेत्र के खुलने पर साधक अपने भीतर ईश्वर के प्रकाश रूप का दर्शन करता है। 'आत्म-बोध' की इस प्रक्रिया के माध्यम से एक इंसान खुद को भगवान से जोड़ सकता है, उस पर ध्यान लगा सकता है और अपने सभी कर्मों, बुराइयों, नकारात्मकताओं को ज्ञान की अग्नि में जलाकर अंततः शाश्वत प्रेम, शांति, खुशी और आनंद को प्राप्त कर सकता है।

आज के समय में जहाँ नकारात्मकता, चिंता, अवसाद और कई बीमारियाँ मनुष्य को मानसिक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक रूप से तोड़ रही हैं, वहीं ब्रह्मज्ञान' की शाश्वत विधि मनुष्य को भीतर से सशक्त बनाती है, सभी भ्रमों को तोड़ती है, उसे शक्ति, आनंद, सकारात्मकता के परम स्रोत से जोड़ती है। अपने भीतर 'शिव' का अनुभव कर 'शिवत्व' प्राप्त करने का यही मार्ग है।

Bhagwan Shiv Katha Ignited True Essence of Shivatva in Rohini, New Delhi

भजनों, वेद मंत्रों के साथ-साथ आध्यात्मिक रहस्यों को उजागर करने वाले ज्ञानवर्धक प्रवचनों ने वातावरण को दिव्य तरंगों से भर दिया। आए हुए भक्त श्रद्धालुओं ने जाना कि 'भगवान' केवल बातों का विषय नहीं है; बल्कि भगवान को हृदय में धारण करने के लिए उनका अपने भीतर साक्षात्कार करना आवश्यक है। एक पूर्ण सतगुरु जिस समय जीव को ब्रह्मज्ञान में दीक्षित करते है, वे उसे अंतरघट में ईश्वर का साक्षात्कार करा देते हैं।

सारांश में, यह कार्यक्रम बेहद सफल रहा और कई जिज्ञासु 'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करने तथा जीवन के परम उद्देश्य की ओर कदम बढ़ाने के लिए आगे आए।

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