भगवान शिव के दिव्य गुणों से भक्तों को परिचित कराने और धार्मिक प्रथाओं से परे गूढ़ आध्यात्मिकतथ्यों से जोड़ने के उद्देश्य से, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) द्वारा 9 से 15 फरवरी 2025 तक ‘महाकुंभ’, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में ‘भगवान शिव कथा’ का आयोजन किया। गुरुदेव श्रीआशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में, सात दिवसीय इस कथा का उद्देश्य भगवान शिव केतत्त्वज्ञान के पवित्र रत्नों को प्रस्तुत करना और साधकों को आध्यात्मिक-जाग्रति के विज्ञान कोसमझाना था। कथा ने विश्वभर से आध्यात्मिक साधकों, भक्तों और तीर्थयात्रियों के एक विशाल औरविविध समूह को आकर्षित किया, जो भगवान शिव के प्रति असीम भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान कीपिपासा को दर्शाता है।

डीजेजेएस प्रचारक, डॉ. सर्वेश्वर जी ने भगवान शिव के सिद्धांतों में निहित लौकिक अंतर्दृष्टियों काअनावरण किया और भक्तों में आध्यात्मिक जागरूकता का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। डॉ. सर्वेश्वर जी ने बताया कि भगवान शिव, त्रिदेव (त्रिमूर्ति) में ब्रह्मा (सृजनकर्ता) और विष्णु (पालनकर्ता) के साथ संहारकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। हालांकि, शिव का संहारक रूप नकारात्मक नहीं है; बल्कियह परिवर्तन, पुनर्जनन और अज्ञानता के निवारण का प्रतीक है, जो सृजन और आध्यात्मिक विकास केमार्ग को प्रशस्त करता है। यह विचार स्वयं जीवन के चक्र से मेल खाता है, जहां मृत्यु और विनाश नवनिर्माण और प्रगति के लिए आवश्यक हैं।
डीजेजेएस प्रतिनिधि ने आगे बताया कि शिव का तीसरा नेत्र ‘आंतरिक जागरण’ का प्रतीक है, जोआध्यात्मिक अंतर्दृष्टि का प्रतिनिधित्व करता है जो भौतिक दृष्टि से परे उच्चतर सत्यों को देखने कीक्षमता, और माया या अज्ञानता के विनाश का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार, शिव उस ज्ञान काप्रतिनिधित्व करते हैं जो लोगों को उनके सीमित दृष्टिकोण से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाता है।उनका तीसरा नेत्र ध्यान, आत्मचिंतन और चेतना की शक्ति का भी प्रतीक है।

डॉ. सर्वेश्वर जी ने समझाया कि दिव्य ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) केवल सैद्धांतिक नहीं है, बल्कि यह एकपरिवर्तनकारी अनुभव है, जो गहन आंतरिक शांति, आत्मसंयम और आध्यात्मिक ज्ञान की ओर लेजाता है। उन्होंने भगवान शिव का उदाहरण दिया, जिन्होंने ‘ब्रह्मज्ञान’ के माध्यम से उच्चतमआत्म-साक्षात्कार प्राप्त किया। डीजेजेएस के सिद्धांतों के अनुरूप, डॉ. सर्वेश्वर जी ने बताया कि एकयोग्य आध्यात्मिक गुरु से प्राप्त ‘ब्रह्मज्ञान’ का मार्ग व्यक्तिगत रूपांतरण का मार्ग प्रशस्त करता है।इसके अभ्यास से व्यक्ति सांसारिक इच्छाओं और आसक्तियों से विमुक्त हो सकता है। गहन ध्यानऔर शिव द्वारा दर्शाए गए आचरणों का पालन करते हुए, भक्त भी उच्चतर चेतना की अवस्थाओं कोप्राप्त कर सकता है, जो अंततः उसे दिव्यता के साथ एकाकार कर देता है।
डीजेजेएस के सतत प्रयासों के क्रम में, डीजेजेएस प्रतिनिधि ने साधकों को दिव्य ज्ञान प्राप्त करने हेतुआमंत्रित किया, जो शाश्वत शांति, ज्ञान और ईश्वर से दिव्य संबंध का मार्ग प्रदान करता है। इसकार्यक्रम को व्यापक मीडिया कवरेज प्राप्त हुआ, जिसमें अनेक समाचार मंचों ने सनातन भक्तों औरआधुनिक आध्यात्मिक साधकों दोनों के लिए कथा के गूढ़ आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित किया।विशाल आध्यात्मिक समागम इस कथा के सफल आयोजन का प्रमाण था| यह एक ऐसा आयोजनथा जो सभी उपस्थित व्यक्तियों के हृदय में गहराई से प्रतिध्वनित हुआ। विविध समूह के भक्तों, आध्यात्मिक साधकों, परिवारों और अंतर्राष्ट्रीय अतिथियों के साथ, यह कार्यक्रम भगवान शिव केदिव्य ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) पर आधारित एक समृद्ध अनुभव प्रदान करता है।