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देव दुर्लभ श्री गुरु पूर्णिमा महोत्सव 2025 के आयोजन में गुरु-शिष्य के सबसे पवित्र औरसनातन संबंध को जीवंत करते हुए, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) द्वारा अत्यंतआत्मिक रूप से यह महोत्सव मनाया गया। 10 जुलाई 2025 को पंजाब के पावन स्थलनूरमहल की हर दिशा पुष्पों की सुगंध, दीपों की रौशनी, रंगोलियों की सुंदरता और दिव्यताकी आभा से सजी हुई थी। हज़ारों श्रद्धालु एवं कई गणमान्य अतिथिगण इस कार्यक्रम में उपस्थित हुए।

Dev Durlabh Shri Guru Purnima Mahotsav 2025 at Nurmahal, Punjab Resonated with the Divine Glory of the Perfect Master of the Era

इस अद्भुत आयोजन की शुरुआत ब्रह्मज्ञानी वेदपाठियों द्वारा वेद मंत्रों के उच्चारण से हुई।इसके पश्चात् दिव्य गुरुदेव की मंगल आरती की गई, जिसने वातावरण को भक्ति औरदिव्यता से भर दिया। प्रत्येक ह्रदय और विचार सतगुरु के श्री चरणों में पूर्ण रूप से समर्पितहो गया। इस दिव्यता को और भी ऊंचाइयों पर पहुंचाया भक्ति संगीत की सुरमयीप्रस्तुतियों ने, जिनके भावपूर्ण शब्दों ने हर भक्त के अंतर्मन को छू लिया। हरेक हृदय इसदिव्य स्पंदन से भीतर तक झंकृत हो उठा।

गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के समर्पित प्रचारक शिष्यों ने आत्मा को पोषित करनेवाले और गहन चिंतनशील प्रवचनों के माध्यम से सतगुरु की कृपा, ज्ञान और मार्गदर्शनकी महिमा का गुणगान किया। उन्होंने गुरु-शिष्य के उस गूढ़ और सूक्ष्म संबंध की व्याख्याकी, जहाँ केवल प्रेम और समर्पण होता है। गुरु रूप में हुए दिव्य अवतारों के बारे में बहुतकुछ लिखा और गाया गया है, लेकिन केवल वही लोग जिन्होंने ब्रह्मज्ञान में दीक्षित होकर भगवान श्रीकृष्ण की गोपिकाओं की तरह उस दिव्य प्रेम का अनुभव किया है, उस प्रेम के आदर्श को वास्तव में समझ सकते हैं कि वह पूर्णतः निर्मल और नि:स्वार्थ होता है।

Dev Durlabh Shri Guru Purnima Mahotsav 2025 at Nurmahal, Punjab Resonated with the Divine Glory of the Perfect Master of the Era

प्रवचनों में यह भी स्पष्ट किया गया कि गुरु-शिष्य का यह पवित्र संबंध गुरु की आज्ञा केपालन में निहित है। शिष्य तब तक ही सच्चा शिष्य कहलाता है जब तक वह गुरु द्वारादिखाए गए मार्ग अर्थात ‘ब्रह्मज्ञान’ के मार्ग पर अडिग रहता है, और उस मार्ग के चारआधार स्तंभ— सेवा, साधना, सुमिरन और सत्संग को निष्ठा से अपनाता है। जब शिष्यपूर्ण समर्पण, ईमानदारी और एकाग्रता से अपने गुरु के मार्ग पर चलता है, तब गुरु, जोकृपा के सागर हैं, उसे आध्यात्मिक रूप से ऐसी ऊंचाइयों पर पहुंचा देते हैं जो मानव बुद्धिकी सीमा से परे है।

संपूर्ण वातावरण भक्ति और भावनाओं की तरंगों से भर गया। हर हृदय ने गुरु की कृपा कोप्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया। कार्यक्रम के पश्चात एक सात्विक भंडारे का आयोजन हुआ।श्रद्धालु धन्य महसूस कर रहे थे कि वे इस युग की पूर्ण सतगुरु सत्ता, दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी के सान्निध्य में हैं।

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