स्थायी कृषि व पारिस्थितिक संतुलन में देसी गाय की नस्लों के महत्व को उजागर करने और ‘गौपालन’ के आध्यात्मिक व सांस्कृतिक महत्व को पुनः जागृत करने हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) द्वारा ‘कामधेनु’ प्रकल्प के अंतर्गत 15 से 17 नवंबर 2024 तक नूरमहल, पंजाब में ‘देसी गौपालन प्रशिक्षण कार्यशाला’ का आयोजन किया गया। कार्यशाला ने स्थायी गाय-पालन प्रथाओं को बढ़ावा देने और पारंपरिक भारतीय कृषि व आधुनिक पशु चिकित्सा विज्ञान के संबंध को मजबूत करने हेतु एक मंच के रूप में कार्य किया। कार्यशाला ‘गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा व विज्ञान विश्वविद्यालय (जीएडीवीएएसयू), लुधियाना के सहयोग से आयोजित की गई जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध विशेषज्ञों की उपस्थिति देखी गई। 18 से अधिक राज्यों के प्रतिभागियों ने स्थायी गाय-पालन प्रथाओं, जैविक खाद तैयार करने, चारा अनुकूलन व गाय स्वास्थ्य प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में व्यावहारिक जानकारी प्राप्त की।

कार्यशाला में प्रतिभागियों को ‘देसी गौपालन’ की आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विरासत से पुनः जोड़ने हेतु डीजेजेएस प्रतिनिधि स्वामी चिन्मयानन्द जी द्वारा गूढ़ विचार प्रदान किए गए। जिसमें उन्होंने भगवान कृष्ण के जीवन व प्राचीन भारतीय ग्रंथों के माध्यम से इसके महत्व को उजागर किया। स्वामी जी ने समझाया कि कामधेनु गौशाला का समग्र स्थायित्व, आध्यात्मिक विरासत व पर्यावरणीय सद्भाव का दर्शन प्राचीन ग्रंथों व श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक व संचालक, डीजेजेएस) की शिक्षाओं से लिया गया है, जो जीवन-पोषण के प्रतीक रूप में गाय (कामधेनु) के पवित्र व व्यवहारिक महत्व को उजागर करता है। डीजेजेएस प्रतिनिधि ने पशुधन प्रबंधन व सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने हेतु प्राचीन ज्ञान व आधुनिक विज्ञान के समन्वय पर बल दिया। उन्होंने समझाया कि भारतीय संस्कृति के स्तंभ व स्थायी जीवन की नींव के रूप में गाय के आध्यात्मिक व पारिस्थितिक महत्व को पहचानना वर्तमान समय की मांग है।
कार्यक्रम में कई गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। कार्यक्रम में विशेष प्रश्न-उत्तर सत्र का नेतृत्व किया, जिसमें रोग प्रबंधन, स्थायी गौशाला प्रथाओं और गाय पालन के लिए पारंपरिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के समन्वय पर प्रतिभागियों के प्रश्नों को संबोधित किया गया तथा प्रमाण-पत्र वितरण समारोह की अध्यक्षता भी की गई , जिसमें प्रतिभागियों की अपने-अपने राज्यों में देसी गौपालन को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को मान्यता दी गई।

कार्यशाला ने भारत की पारंपरिक गाय-पालन प्रथाओं को पुनर्जीवित करने और बनाए रखने के लिए एक अग्रणी पहल के रूप में स्वयं को स्थापित किया और स्वदेशी गाय नस्लों के सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित किया।
