लोगों को शांति, प्रसन्नता और दिव्यता के स्रोत से जोड़ने हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) द्वारा 26 फरवरी, 2022 को चंडीगढ़, पंजाब में भजन संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भक्ति रचनाओं की श्रृंखला ने वातावरण में दिव्यता का संचार किया जिसने आध्यात्मिक विचारों को भी ग्रहण करने के लिए अनुकूल मनोभूमि का निर्माण किया। मधुर दिव्य भजनों ने श्रोताओं को भक्ति की उच्च भावनाओं से रंग दिया।
आज घृणा, अवसाद और उदासी आदि नकारात्मकताएं जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गयी है। आज मनुष्य अधिक से अधिक पाने की दौड़ में शांति को खोता जा रहा है। मात्र आध्यात्मिक जागरण के माध्यम से ही भीतर और बाहर शांति स्थापित करना सम्भव है।
परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक और संचालक, डीजेजेएस) की शिष्या साध्वी सुमेधा भारती जी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए समझाया कि हमारे शास्त्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि जब भी हम अपने मूल आत्मा को भूल जाते हैं तो हम नकारात्मकता के गहरे गड्ढे में गिरने लगते हैं। जीवन में अनेक बार ऐसा समय आता है, जब सांसारिक उपलब्धियों के बावजूद भी व्यक्ति को एक खालीपन महसूस होता है। यह इसलिए क्योंकि सांसारिक वस्तुओं से प्राप्त सुख अस्थायी है। लेकिन आत्मा से जुड़कर प्राप्त शाश्वत दैवीय सुख ही चिरस्थायी होता है। आत्मिक स्तर पर जुड़कर मानव अपनी सभी जिम्मेदारियों को सकारात्मकता तरीके से पूर्ण कर पाता है।
सुख का एकमात्र चिरस्थायी स्रोत ईश्वर है। ईश्वर से जुड़ने से जो सुख मिलता है वह कभी मिटता नहीं। हमारे वैदिक शास्त्र एक स्वर में कहते हैं कि ईश्वर तक पहुँचने के लिए एक पूर्ण आध्यात्मिक गुरु की अनिवार्यता है। वे सतगुरु जिन्होंने स्वयं भी परम सत्य को जाना हो, और शिष्यों को भी ईश्वर- साक्षात्कार करवाने ने सामर्थ्यवान हो। एक आध्यात्मिक गुरु शिष्य को "ब्रह्मज्ञान- ईश्वरीय ज्ञान" प्रदान करते हैं। जीवन में दिव्यता और भक्ति की धारा तभी प्रवाहित हो सकती है जब व्यक्ति को ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ईश्वर का अनुभव हो।
इस ज्ञान को प्राप्त कर भक्त ध्यान के द्वारा भीतर की ओर जाने में सक्षम होता है। वह अपने भीतर की दुनिया में जितना गहरा गोता लगाता है, उसके विचार उतने ही शुद्ध होते जाते हैं। यह तब तक चलता रहता है जब तक उसका मन विकारों से मुक्त नहीं हो जाता। ध्यान प्रक्रिया द्वारा शिष्य अपने मन को शुद्ध कर दिव्यता से परिपूर्ण कर लेता है। एक सच्चे गुरु के मार्गदर्शन में, प्रत्येक शिष्य धार्मिकता के मार्ग पर चलने और वास्तविक उद्देश्य को पूरा करने का प्रयास करता है।
आत्म-सुधार सामाजिक उत्थान का मूल है। जब तक जड़ को पोषण नहीं दिया जाता, तब तक वृक्ष का पूर्ण विकास नहीं हो सकता। जब प्रत्येक व्यक्ति का भीतरी सुधार होगा तो समाज स्वतः ही सुधर जाएगा। आध्यात्मिक यात्रा की ओर प्रेरित करने के उद्देश्य से भजन संध्या का आयोजन किया गया। भक्तों व उपस्थित लोगों ने दिव्यता व सकारात्मक तरंगों का अनुभव किया।