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किसी भी समाज के मूल चरित्र का निर्धारण वहां के बच्चों के साथ किये जाने वाले बर्ताव से ही हो सकता है। किन्तु बाल अधिकारों के प्रति समाज की घोर उदासीनता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज प्रत्येक राष्ट्र बाल शोषण जैसे घृणित अपराधों की गिनती में एक-दूसरे की होड़ में लगा हुआ है। भारत भी इस प्रतिस्पर्धा में पीछे नहीं है। यद्यपि भारत सरकार द्वारा इस दिशा में निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। विभिन्न स्तर पर कानून लागू हो चुके हैं और अनेक समितियों का गठन भी किया गया है। किन्तु हमें यह समझना होगा कि आयोग बन जाना किसी समस्या का हल नहीं है। किसी भी समस्या के समाधान के लिए उसकी जड़ों तक पहुँच कर कार्य करना होता है और यह केवल समूचे समाज की आत्मा में संवेदनशील जागृति व् विभिन्न संस्थाओं के संकल्पपूर्ण नेतृत्व से ही संभव हो सकता है।

जन-जन तक बाल-शोषण के विरुद्ध आवाज़ पहुंचाने और उन्हें इसके प्रति जागरुक करने के लिए समाधान अभियान नामक गैर सरकारी संगठन ने 23 अगस्त, 2020 को ऑनलाइन मंच के माध्यम से इन महत्वपूर्ण विषयों पर एक वेबिनार का आयोजन किया जिसका विषय था- “Strategies to tackle child sexual abuse in India”। कार्यक्रम का संचालन समाधान अभियान की कार्यकर्ता अर्चना अग्निहोत्री और शीलम बाजपेई ने किया। मुख्य अतिथि के तौर पर न्यायाधीश वीरेंदर जैन (पूर्व मुख्य न्यायाधीश, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय और पूर्व  पूर्व अध्यक्ष, उत्तराखंड राज्य मानवाधिकार आयोग), सुनील गौतम (IPS, Special Commissioner of Delhi Police) और विश्वजीत घोषाल (Director, Prayas Juvenile Aid Centre) ने अपनी उपस्थिति से इस कार्यक्रम को सार्थकता प्रदान की। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के प्रकल्प के रूप में कार्यरत मंथन-सम्पूर्ण विकास केंद्र, जो कि समाज के अभावग्रस्त बच्चों को निशुल्क एवं मूल्याधारित शिक्षा प्रदान कर उनके सम्पूर्ण विकास के लिए प्रयासरत है, के शिक्षक और कार्यकर्ताओं ने भी इस वेबिनार में भाग लिया।

अपने व्यक्तिगत अनुभवों का उल्लेख करते हुए न्यायाधीश वीरेंदर जैन ने बाल-शोषण के अंतर्गत आने वाली विभिन्न आपराधिक गतिविधियां जैसे बाल यौन शोषण, मानव तस्करी, बाल मज़दूरी और पोर्नोग्राफी आदि की गंभीरता एवं कारणों से सभी को अवगत कराया और साथ ही इन समस्याओं के समाधान भी दिए। श्री सुनील गौतम ने भी इस बारे में अपने विचार सांझा करते हुए बताया कि वे ऐसे मामलों को निपटाने के लिए पुलिस अधिकारियों को कैसे प्रशिक्षित करते हैं और बाल शोषण से संबंधित कानूनों के बारे में जानकारी देते हैं। उन्होंने दो पुस्तकों, एक स्वयं लिखित "हर बच्चा जीनियस बन सकता है" और दूसरी "संविधान काव्य" के बारे में भी उल्लेख किया, जिसका उपयोग वह प्रशिक्षण के दौरान कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर भी कुछ उपाय सुझाये जैसे पीड़ित बच्चे की हर बात को ज़िम्मेदारी के साथ सुनें, पुलिस स्टेशन में बाल यौन-शोषण की रिपोर्ट जल्द-से-जल्द करवाएं, बच्चे के सामने उसके साथ घटित घटना के बारे में ज़्यादा चर्चा न करें आदि जिससे इन अपराधों के प्रति सभी जागरूक हो सकें। सत्र को गति प्रदान करते हुए श्री विश्वजीत घोषाल ने पीड़ितों और बच्चों के साथ काम करने के बारे में अपने अनुभव सांझा किए। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि गैर सरकारी संगठन और अन्य संगठनों में विशेष रूप से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं का पुलिस सत्यापन अनिवार्य होना चाहिए, जिससे कि आवश्यकता पड़ने पर उनके रिकॉर्ड को ट्रैक करने में आसानी हो।

इस वेबिनार का हिस्सा बनने के लिए मंथन-SVK, समाधान अभियान और अतिथियों का हार्दिक धन्यवाद करता है और इस दिशा में हर संभव प्रयास करने का संकल्प लेता है।

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