कलयुग में निःस्वार्थ दान की परंपरा को रेखांकित करने व भक्तों को दूसरों के कल्याण में अपने योगदान पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु ‘दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान’ द्वारा 30 जनवरी 2025 को महाकुंभ, प्रयागराज में ‘नाट्योत्सव- थिएट्रिकल एक्सक्लूसिव’ के अंतर्गत ‘दान (कलियुग का कल्प वृक्ष)’ नामक मनमोहक नाट्य प्रस्तुति का आयोजन किया गया। यह भव्य आयोजन ‘दिव्य ज्योति चलचित्रम शृंखला 4’ का एक अभिन्न अंग रहा जिसकी कल्पना ‘श्री आशुतोष महाराज जी’ के दिव्य नेतृत्व में की गई थी। डीजेजेएस के निःस्वार्थ कार्यकर्ताओं द्वारा नाटकीय प्रस्तुति में असाधारण प्रदर्शन ने असंख्य तीर्थयात्रियों, भक्तों व आध्यात्मिक साधकों को आकर्षित किया। नाटक की प्रभावपूर्ण कथा ने यह दर्शाने का प्रयास किया कि कैसे प्रेम व करुणा युक्त दान भौतिक सीमाओं को पार कर व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास व सामाजिक कल्याण दोनों में योगदान देता है।

डीजेजेएस की प्रचारक, साध्वी दीपा भारती जी ने नाटक का परिचय देते हुए ‘दान’ की पारंपरिक मौद्रिक व्याख्या से परे उसके वास्तविक अर्थ को उजागर किया। उन्होंने समझाया कि ‘दान’ केवल धन से संबंधित नहीं है अपितु सही इरादे से देने से भी जुड़ा है, फिर चाहे वह ज्ञान हो, दया हो, सेवा हो या आत्म-बोध हो। उन्होंने बताया कि जहाँ वर्तमान समाज भौतिक सफलता व व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता देता है, वहीं यह नाटक सदियों पुराने ज्ञान की पुष्टि करता है कि वास्तविक संतोष संचय द्वारा नहीं अपितु संसाधनों, समय व ज्ञान के उदारपूर्वक सहभाजन से प्राप्त होता है। ‘दान’ नाटक में दर्शाया प्रत्येक उदाहरण ग्रंथों से लिया गया है, अतः सुनिश्चित करता है कि उपस्थित श्रद्धालुगण ग्रंथों में निहित निःस्वार्थ दान के वास्तविक सार को समझ पाएं।
डीजेजेएस प्रचारक साध्वी पद्महस्ता भारती जी ने नाटक के विषय ‘दान (कलियुग का कल्प वृक्ष)’पर ज्ञानवर्धक व्याख्यान दिया। इच्छा पूरी करने वाले पौराणिक ‘कल्पवृक्ष’ से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने समझाया कि यह नाटक दान को एक दिव्य कर्म के रूप में दर्शाता है जो आधुनिक समय की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी सकारात्मक परिवर्तन लाने में सक्षम है। नाटक में ‘कल्पवृक्ष’ दान की परिवर्तनकारी क्षमता का प्रतीक है, जो समझाता है कि निःस्वार्थ दान सांसारिक व आध्यात्मिक दोनों इच्छाओं की पूर्ति कर शांति, सद्भाव व ज्ञान को बढ़ावा दे सकता है। उन्होंने बताया कि केवल सच्चे आध्यात्मिक गुरु से ‘ब्रह्मज्ञान’ प्राप्त करने के बाद ही व्यक्ति छिछले दान व विशुद्ध निःस्वार्थ दान के अंतर को समझ सकता है। उन्होंने समझाया कि सच्चा ‘दान’ बिना किसी अपेक्षा के अर्पित किया गया वह दान है जो दान-कर्ता व प्राप्त-कर्ता दोनों को आध्यात्मिक स्तर पर पोषित करता है।

कार्यक्रम की आध्यात्मिक भव्यता को बढ़ाते हुए, ‘ज्ञान ज्योति गुरुकुलम्’, रिवाला धाम, कोटपूतली, राजस्थान से गुरुकुल के प्रमुख ‘स्वामी गणेशानंद जी महाराज’ की 100 छात्रों सहित उपस्थिति ने नाटक की शोभा में चार चाँद लगाए। नाटक के संदेश से प्रभावित हो समाचार पत्रों द्वारा नाटक को अत्यधिक सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। उपस्थित श्रद्धालुओं ने अपने भावों को व्यक्त करते हुए बताया कि प्रस्तुति ने दान के प्रति उनकी सोच को पुनः जागृत कर समझाया कि दान केवल भौतिक आदान-प्रदान में नहीं अपितु सेवा के रूप में कार्य करता है जो सामाजिक कल्याण व व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास में योगदान देता है। ‘दान’ नाट्य प्रस्तुति ने निस्वार्थता, करुणा व आध्यात्मिक पूर्ति का कालातीत संदेश दिया। प्रस्तुति न केवल एक सांस्कृतिक संवर्धन रही, अपितु एक आध्यात्मिक जागृति भी जिसने उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने जीवन में दान के सही अर्थ को अपनाने का आग्रह किया।