भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में अनेक दिव्य लीलाओं को किया। पृथ्वी पर प्रभु का अवतरण एक निर्धारित उद्देश्य के अनुरूप होता है। 15 अप्रैल से 19 अप्रैल 2019 तक पंजाब के शाहकोट क्षेत्र में “श्री कृष्ण कथा” आयोजन द्वारा प्रभु की विभिन्न लीलाओं में निहित गहन आध्यात्मिक संकेतों को प्रगट किया गया। साध्वी सौम्या भारती जी ने कथा वाचन द्वारा भगवान की शिक्षाओं पर प्रकाश डाला।
भक्त प्रत्येक दिन प्रभु लीला को श्रवण करने, अपने ज्ञान में वर्धन हेतु और कथा स्थल की दिव्यता का अनुभव करने लिए कथा स्थल पर भारी संख्या में उपस्थित रहे। साध्वी जी ने बताया कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म प्रबल होगा और वास्तविक धर्म संकटग्रस्त होगा, तब- तब ईश्वर अवतरित होंगे। ऐसी ही स्थिति आज भी देखी जा रही है, जहाँ सभी ओर पाप और अपराध का प्रसार है। आज एक बार पुनः श्री कृष्ण जैसे महान व्यक्तित्व के अवतरण की आवश्कता है, जो धर्म को पुनर्जीवित कर सके। साध्वी जी ने कहा कि यदि आज ईश्वर अवतार स्वीकार कर लें, तो हम उन्हें कैसे पहचान पाएंगे? इसका समाधान शास्त्रों में निहित है कि सच्चा जगतगुरु ही आपको अपने वास्तविक स्व (आत्मा) का अनुभव कराने में सक्षम है।
कथा में महाभारत युद्ध के दौरान जगतगुरु श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को ब्रह्मज्ञान के माध्यम से आत्म-साक्षातकार प्रसंग को रखते हुए, सच्चे जिज्ञासुओं का मार्गदर्शन किया गया। ब्रह्मज्ञान ही ईश्वरीय से जुड़ने का आवश्यक उपकरण है। जिज्ञासु दृढ़ता और उत्साह से इस दिशा की ओर बढ़ता हुआ अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। भारतीय प्राचीन शास्त्रों व ग्रंथों ने सदैव मानव को इसी मार्ग की ओर बढ़ने हेतु प्रेरित किया है। शास्त्रों में वर्णित समस्त ज्ञान ही सही अर्थों में एक व्यक्ति के जीवन में शांति और समृद्धि लाने में सक्षम हैं।
ब्रह्मज्ञान द्वारा परिवर्तन की वह लहर उठती है, जिसके माध्यम से व्यक्ति, व्यक्ति से परिवार, परिवार से समुदाय, समुदाय से राष्ट्र और राष्ट्र से विश्व में शांति की स्थापना सम्भव है। इसी मूल सिद्धांत को वर्तमान में परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी विश्व शांति लक्ष्य सिद्धि हेतु क्रियान्वित कर रहे है। गुरुदेव के मार्गदर्शन में उनके अनेक शिष्य निःस्वार्थ भाव से कथाओं का वाचन व आयोजन कर रहे हैं। उनका यह निःस्वार्थ योगदान कई लोगों को लाभान्वित करता हुआ, शांतिपूर्ण जीवन की ओर अग्रसर कर रहा है।
कथा में अध्यात्मिक विवेचना के साथ- साथ भक्त संगीतकारों द्वारा मधुर रचनाओं के गायन ने सभा में दिव्यता का संचार किया। प्रेरणादायक भजनों में भक्तों के हृदयों में प्रभु भक्ति के भावों को जागृत किया। कथा द्वारा प्रभावित हो अनेक भक्तों ने ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ईश्वर दर्शन द्वारा जीवन को सार्थक किया।