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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने एक बार फिर परम पूजनीय गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के पवित्र मार्गदर्शन के तहत लुधियाना, पंजाब के भक्तों के लिए श्रीकृष्ण कथा का आयोजन किया। 28 अक्टूबर 2018 से आरम्भ हुई कथा की आध्यात्मिक रसधारा पांच दिवसों तक प्रवाहित हुई तथा 1 नवंबर 2018 को कथा का समापन हुआ। साध्वी रुपेश्वरी भारती जी ने श्रीकृष्ण की लीलाओं और चरित्र के विषय में विस्तार से विचारों को रखा। उन्होंने समझाया कि भगवान की कोई भी लीला सामान्य नहीं हुआ करती, उन लीलाओं के पीछे गहन सूक्ष्म अर्थ निहित होते हैं। उन्होंने श्री कृष्ण के बचपन से सम्बन्धित बाल लीलाओं का रोचक ढ़ंग से वर्णन करते हुए उनके आध्यात्मिक रहस्यों के प्रति भक्तों को जागरूक किया।

साध्वी जी ने कथा का आरम्भ श्री कृष्ण जन्म के कारणों, मथुरा नगर में लोगों की दयनीय स्थिति व कंस मृत्यु की भविष्यवाणी आदि प्रसंगों द्वारा किया। हालांकि, श्रीकृष्ण मोक्षप्रदाता हैं लेकिन फिर भी उन्होंने कारागार में जन्म को स्वीकार किया। सघन रात्रि में श्री कृष्ण दिव्य व आलौकिक शक्तियों के संग प्रगट हुए, दिव्य लीलाओं द्वारा जगत का कल्याण करने हेतु उनके जन्म के समय सभी दरवाजे स्वयं ही खुल गए। भक्तों ने श्रीकृष्ण जन्म महोत्सव पर फूलों की वर्षा व प्रभु महिमा का गुणगान किया। साध्वी जी ने उसके बाद कंस द्वारा श्री कृष्ण के वध हेतु भेजे गए राक्षसों के वृतांतों को रखते हुए बताया कि नन्हे से कान्हा ने उन सभी राक्षसों का उद्धार कर दिया। ये राक्षस एक मानव की बुद्धि में व्याप्त कुविचारों व दुष्प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं और जब कोई भगवान के पवित्र शरणागति को स्वीकार करता है, मात्र तब वह उनसे मुक्त हो पाता है। कथाव्यास जी ने वर्तमान समाज में व्याप्त बुराइयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण के दिव्य लीलाओं में ही इस समस्याओं को निर्मूल करने का समाधान निहित है। मानव की यह सोच की जीवन में ख़ुशी मात्र धन व भौतिकता से ही सम्भव है, ईश्वर से उसकी दुरी को बढ़ती जा रही है। लेकिन जब ईश्वरीय कृपा से हमारे जीवन में एक पूर्ण सतगुरु का आगमन होता है, तो वह हमें ईश्वर के दर्शन हेतु अपने भीतर जाने का मार्ग प्रदान करते हैं। अन्य योनियों की तुलना में मानव तन में विद्यमान यही द्वार मुख्य विशेषता है जो ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम है। भगवान ने मनुष्य को अपने समान बनाया है, लेकिन समय के पूर्ण सतगुरु ही मानव में ईश्वर के रूप को जागृत करते हैं। गुरु, शिष्य को शाश्वत विज्ञान “ब्रह्मज्ञान”  प्रदान कर उसके दुर्गुणों को समाप्त करते हुए शास्त्रों में वर्णित वास्तविक मनुष्य बनाते हैं। ब्रह्मज्ञान द्वारा ध्यान की शाश्वत प्रक्रिया का निरंतर अभ्यास करने से साधक स्वयं को नकारात्मकता से मुक्त कर अपने परम लक्ष्य को प्राप्त करता है। हर मानव द्वारा इस मार्ग पर अग्रसर होने से सुंदर व शांत समाज का निर्माण पूर्ण होता है।

अंतिम दिन तक, सभी उपस्थित लोग पूर्ण रूप से भक्ति भावनाओं में डूब गए। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के निःस्वार्थ स्वयंसेवकों द्वारा भक्ति गीतों के सरस गायन ने लोगों को ब्रह्मज्ञान प्राप्त करते हुए, समाज में व्याप्त सभी बुराइयों को समाप्त करने के लिए सहयोग देने हेतु प्रेरित किया। लोगों ने संस्थान के सामाजिक पहलुओं को जानकर, संस्थान में  शामिल होने की इच्छा को जाहिर किया।
 

Shri Krishna Katha in Ludhiana, Punjab brought the Spiritual Revolution among the Masses

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