भक्ति ही ईश्वर तक पहुँचने की कुंजी है। यह एक सरल मार्ग है, लेकिन इस मार्ग पर चलना अक्सर कठिन होता है। इस मार्ग पर बढ़ते हुए इस बात का आश्वासन भी अत्यंत आवश्यक है कि हम सही पथ की ओर अग्रसर है भी या नहीं। क्या हमें हमारी भक्ति का फल प्राप्त होगा? भक्ति की राह में और उत्साह से बढ़ने के प्रयोजन हेतु 5 फरवरी 2019 को डी.जे.जे.एस द्वारा कुम्भ, प्रयागराज में भक्तिमयी भजन संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया। स्वामी चिदानंद जी द्वारा संचालित इस कार्यक्रम का विषय श्री हनुमान गाथा थी।
श्री हनुमान प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त थे और उनकी यही पहचान उनकी विशेषता थी हालाँकि, एक पूर्ण भक्त बनने की उनकी यात्रा आसान नहीं थी। भगवान राम को देखने के लिए उन्हें भी काफी लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा था। अपने गुरु भगवान सूर्य से ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को जाना और आजीवन प्रभु श्री राम के महान लक्ष्य में अपना जीवन समर्पित करने का निश्चय किया।
ब्रह्मज्ञान के प्रभाव से श्री हनुमान जी ने उन सभी गुणों को धारण किया जो प्रभु श्री राम द्वारा निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति के लिए आवश्यक थे। धैर्य और विश्वास एक शिष्य के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अंग होते है और श्री हनुमान के अंदर इन दोनों ही गुणों का सुन्दर समावेश था। भगवान श्री राम ने उन्हें देवी सीता की खोज में रावण की लंका में भेजा था एवं श्री हनुमान ने अपने प्रभु पर पूर्ण विश्वास रखते हुए एवं धैर्य का परिचय देते हुए माँ सीता को लंका में खोज निकाला। इसके अतिरिक्त लंका में पकड़े जाने पर जब उनकी पूँछ में आग लगाई गयी तब भी वह विचलित नहीं हुए और ईश्वर पर अपने विश्वास के कारण उन्होंने इस विषम परिस्तिथि को भी अवसर में बदलते हुए उसी पूँछ से पूरी लंका जला दी। स्वामी जी ने इस घटना का विश्लेषण करते हुए समझाया कि श्री हनुमान की सफलता का कारण था उनका अपने गुरु द्वारा प्राप्त दिव्य ज्ञान। यह उनके गुरु थे जिन्होंने भगवान श्री राम और उनके बीच की खाई को काटा था। हम भी, भक्ति के मार्ग पर आसानी से चल सकते हैं आवश्यकता है तो केवल उस सच्चे गुरु की खोज की जो हमें परमात्मा का साक्षात्कार करवा सके। परम पूजनीय आशुतोष महाराज जी आज के समय के एक ऐसे ही पूर्ण संत, एक पूर्ण सद्गुरु है जो समाज को वही दिव्य ज्ञान प्रदान कर रहे है।
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