मानव मन आकाश की भांति अंतहीन हो सकता है, लेकिन उसकी सीमा निर्धारित होना अत्यंत आवश्यक है किन्तु एक सशक्त मस्तिष्क को किसी सीमा में बाँधा नहीं जा सकता। स्वामी विवेकानंद ने स्पष्ट रूप से समझाया कि, ये हमारा मस्तिष्क ही है जो हमें दुनिया को देखने उसे समझने का नजरिया प्रदान करता है। हमारे विचार ही किसी चीज़ को खूबसूरत या फिर बुरा बनाते है। ये पूरी दुनिया को देखने का नज़रिया हमारा मस्तिष्क ही हमें प्रदान करता है इसलिए ये जरुरी है कि हम उसे ज्ञान की रौशनी से पोषित करें।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ("डीजेजेएस") समाज में रचनात्मक गतिशीलता को बनाए रखने के लिए कार्यरत है। वातावरण में आध्यात्मिक तरंगों के संचार हेतु कुंभ मेला प्रयागराज 2019 में डीजेजेएस द्वारा 15 फरवरी, 2019 को एक भक्ति से परिपूर्ण भजन संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कई प्रतिष्ठित एवं बुद्धिजीवी वर्ग सम्मिलित हुए। भक्ति से ओतप्रोत स्वर लहरियों ने उस परमसत्ता की असीम कृपा, उनकी दिव्यता को सबके समक्ष रखा। इस सम्पूर्ण कार्यक्रम का भक्त श्रद्धालुगणों ने पूरा आनंद उठाया।
इस कार्यक्रम की संचालिका, गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी रुचिका भारती जी ने अपने विचारों के माध्यम से बताया कि आज संसार में हर कोई इस मन की चंचलता के कारण ही दुखी है। स्वामी विवेकानंद जी ने बहुत सूंदर कहा है कि हम जो कुछ भी हैं उसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं और जो कुछ भी हम खुद के लिए चाहते हैं, खुद को उस काबिल बनाने का सामर्थ्य हम सबके भीतर है। केवल एक संयमित एवं सकारात्मक दिमाग ही आपको अपना लक्ष्य पूरा करने में मदद कर सकता है। इसलिए उन्होंने कहा कि उपवास, एवं भूखे रहकर अपने शरीर को यातना देना ये तपस्या नहीं कहलाता वरन अपने मन को नियंत्रण में रखना ही वास्तविक तपस्या है।
यद्यपि मन को नियंत्रित करना एक कठिन कार्य है, पर ये असंभव नहीं है। एक पूर्ण संत द्वारा प्राप्त ब्रह्मज्ञान के माध्यम से मन को संयमित किया जा सकता है। हालांकि ब्रह्मज्ञान के अभाव में मन का नियंत्रण संभव नहीं है। ध्यान साधना के माध्यम से जब मनुष्य आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है तो धीरे धीरे वो मन की मलिनताओं से ऊपर उठकर शान्ति और पवित्रता को प्राप्त करता है और अपने मन को नियंत्रित कर पाता है। ब्रह्मज्ञान के द्वारा ही मनुष्य अपने भीतरी गुणों को पहचान पाता है , जीवन में सही और गलत के बीच चुनाव कर पाता है ,और सकारात्मकता की ओर अग्रसर हो पाता है जो कि आज के समय की आवश्यकता है। इस कार्यक्रम के माध्यम से भक्त श्रद्धालुगणों ने अपनी आत्मिक क्षुधा को शांत किया।