गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक व संचालक, डी.जे.जे.एस.) की दिव्य प्रेरणा से 4 से 8 अप्रैल 2023 तक पंजाब के गिद्दड़बाहा में 5 दिवसीय श्रीकृष्ण कथा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रतिदिन कार्यक्रम का शुभारम्भ भगवान श्रीकृष्ण के चरण कमलों में प्रार्थना एवं वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ हुआ। साथ ही भक्तिमय भजनों की श्रृंखला से सम्पूर्ण वातावरण दिव्य स्पंदन से परिपूर्ण हो गया। कथा व्यास साध्वी गरिमा भारती जी ने सारगर्भित व्याख्यानों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के शाश्वत सार को प्रस्तुत किया|
मनुष्य सामाजिक प्राणी है| अतः वह प्रेम, स्नेह, सहानुभूति, विश्वास आदि को प्राप्त करने की उम्मीद में विभिन्न संबंधों को संजोता है| परन्तु इन संबंधों को ठीक प्रकार न निभा पाने के कारण वह संबंधों में तनाव और टकराव का भी सामना करता है| अतः ईश्वर से अपना नाता जोड़ें, जो अन्य सभी संबंधों को आधार एवं अर्थ प्रदान करता है| द्वापर युग का उल्लेख करते हुए साध्वी जी ने समझाया कि भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण में सभी रिश्तों का सार मिला| कुछ ने उन्हें अपने पुत्र के रूप में देखा, तो कुछ के लिए वे एक दिव्य पिता थे| कुछ के लिए वे शुद्ध प्रेम और करुणा के अवतार और कई भक्तों के लिए वे उनके सच्चे सनातन मित्र थे। भगवान श्रीकृष्ण ने सतगुरु बन, अपनी शरण में आये भक्तों को ब्रह्मज्ञान के दिव्य विज्ञान के द्वारा आत्म जाग्रति प्रदान की, जिससे वे संबंधों को निभाने और उनकी सार्थकता बनाये रखने में सफल हुए|
यदि किसी सम्बन्ध का आधार केवल भौतिक या बौद्धिक होता है, तो उसकी सफलता भी अल्पकालिक और सतही होती है। लेकिन जब कोई व्यक्ति भगवान के साथ उस शाश्वत संबंध को स्थापित कर लेता है, तो उसे वह कला प्राप्त होती है जिससे वह अपने सभी समबन्धों को आध्यात्मिक स्तर पर भी पोषित कर पाता है| आगे साध्वी जी ने भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न भक्तों के जीवन में आए आत्म-जागृति के क्षणों का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे अपने गुरु के प्रति समर्पण जीवन में स्व-केंद्रित दृष्टिकोण को त्यागने और सृष्टि को ईश्वर के एक वृहद् परिवार के रूप में देखने की दृष्टि देता है।
साध्वी जी ने ब्रह्मज्ञान के महत्व को समझाते हुए कहा कि पूर्ण गुरु से प्राप्त ध्यान और भक्ति की शाश्वत विधि ही वास्तविक सुख और सद्भाव का मार्ग प्रशस्त करती है। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ऐसे ही पूर्ण सत्गुरु हैं, जो दिव्य दृष्टि प्रदान कर एक साधक को उसके भीतर ईश्वर के शाश्वत रूप का दर्शन करवाते हैं, जिससे वह अध्यात्म के उच्चतम शिखर पर पहुँचने में सफल हो पाता है। कार्यक्रम में उपस्थित साधक भावपूर्ण भजनों एवं सारगर्भित दिव्य प्रवचनों से मंत्रमुग्ध हो गए। बहुत से जिज्ञासु ब्रह्मज्ञान के सर्वोच्च विज्ञान को प्राप्त करने हेतु आगे आए और उन्होंने अपने जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण यात्रा प्रारंभ की।