प्रत्येक बीतते वर्ष के साथ वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता जारहा है। आज स्थिति इतनी चिंताजनक है कि इसके निवारण हेतु कड़े कदम उठाने अनिवार्य होगए हैं। परंतु चिरस्थाई समाधान के लिए समय कि मांग है कि मानव जीवनशैली मे आमूलचूल परिवर्तन लाया जाये। आवश्यकता है कि मानव पर्यावरण प्रतिकूल जीवनशैली से पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली कि ओर बढ़े।
इसी को ध्यान मे रखते हुये, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान का पर्यावरण संरक्षण प्रकल्प- संरक्षण विभिन्न जागरूकता गतिविधियों व मूहीमों के माध्यम से मानव- प्रकृति के धूमिल होते संबंध को पुनर्स्थापित कर जन सामान्य को पर्यावरण संरक्षण के मार्ग पर अग्रसर कर रहा है। इन्हीं गतिविधियों के तहत एक विशेष पहल कि गयी भारतीय पर्वों कि अंतर्निहित दिव्यता व पर्यावरण अनुकूल स्वरूप को इस आधुनिक समाज के समक्ष प्रकट करने कि।
समय के प्रवाह मे जैसे जैसे समाज आधुनिकीकरण के शिखर छूने लगा वह भारत कि दिव्य, प्रकृति संतुलन के विज्ञान पर आधारित संस्कृति को भूल गया जिसके चलते, मनोरंजन के नाम पर असंख्य ऐसी गतिविधियां जुड़ गयी जो व्यक्ति, समाज, व पर्यावरण के लिए आज हानिकारक सिद्ध होरही हैं। भारतवर्ष का विशिष्ट पर्व दीपावली भी समय के प्रवाह मे असंख्य ऐसी गतिविधियों से घिर गया। परम्पराओं व मनोरंजन के नाम पर पटाखे जालना, नशा व जूआ खेलने जैसी कुप्रथाएँ इस पर्व के साथ जुड़ गयी हैं। इन कुप्रथाओं का खंडन करते हुये व मानव समझ को एक बार पुनः दीपवाली के दिव्य रहस्य से जोड़ने हेतु हर वर्ष संस्थान देशभर मे विस्तृत अपनी विभिन्न शाखाओं मे पर्यावरण अनुकूल दीपावली मानता है।
इसी उदेश्य से संस्थान के नूरमहल, पंजाब स्थित आश्रम मे बिजली से जलने वाली लड़ियों के इस्तेमाल को पूरी तरह छोड़ पर्यावरण संरक्षण हेतु 80,000 दीपों से दीपमाला कि गयी व साफ स्वच्छ व पर्यावरण अनुकूल दीपावली मनाई गयी। दिन कि शुरुआत वातावरण कि शुद्धि हेतु समर्पित एक भव्य यज्ञ के आयोजन से कि गयी। तत्पश्चात सम्पूर्ण परिसर को पुष्पों व मिट्टी के दीयों से सजाया गया और रात्री मे सरसों के तेल से दीपों को परदीप्त किया गया। देश भर से आए श्री आशुतोष महाराज जी के सैंकडों शिष्य इस दिव्य दीपवाली मे सम्मिलित हुये व पर्यावरण संरक्षण का संकल्प उठाया।