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नवरात्री- नौ रातों का एक ऐसा पावन पर्व है जो उपवास से लेकर भंडारे जैसे विविध उत्सवों का आलिंगन करता है । जिसमें मनुष्य अपने भीतर की मातृ शक्ति से ध्यान के माध्यम से जुड़कर पवित्रता एवं आत्मिक आलोक को प्राप्त करता है। परन्तु विडंबना, वही समाज जो नारी के शक्ति रूप का सम्मान व वंदन करता है, दूसरी ओर स्वयं कन्या भ्रूण हत्या के अपराध से अपने हाथ भी रंगता है। अतः नव दिवसीय नवरात्री पर्व अपने आप में एक प्रश्न चिह्न खड़ा करता है – कन्या पूजन के रूप में कन्या भ्रूण हत्या क्यूँ? दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के लिंग समानता कार्यक्रम – संतुलन द्वारा प्रत्येक नवरात्री पर्व पर नारियों के शक्ति जागरण एवं समाज में नारी की अस्मिता की पुनर्स्थापना हेतु 9-दिनों का जागरूकता अभियान चलाया जाता है।

Santulan celebrates Navratri, ventures to awaken Durga within women

यह समझना अत्यंत आवश्यक है की देवी दुर्गा का आराधन यदि मात्र मूर्तियों में ही नहीं अपितु उनकी जीवंत अभिव्यक्तियों में भी हो, तो समाज का मानचित्र बदला जा सकता है। इसी विचारधारा पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से देश भर में संतुलन द्वारा नवरात्री पर्व पर मंदिर परिसरों में 9-दिवसीय जागरूकता प्रदर्शनी लगायी जाती है। संतुलन के उत्साही स्वयंसेवक नवरात्री की इस प्रदर्शनी के अंतर्गत मंदिरों में पहुचे असंख्य लोगों को कन्या भ्रूण हत्या रूपी जघन्य अपराध की रोकथाम हेतु जागरूक किया जाता है।

उपरिलिखित जागरूकता अभियान के अंतर्गत संतुलन द्वारा समाज में महिलाओं का दर्जा गिराती विकृत सांस्कृतिक अवधारणाओं का शास्त्रों के गूढ़ तथा रहस्यमयी तथ्यों के आधार पर खंडन किया जाता है। अतः काउंटरों पर लिंग आधारित पक्षपात के स्वाभाव और सीमा को मापने हेतु रोचक एवं संवेदनात्मक गतिविधियों को आयोजित किया जाता है।               

Santulan celebrates Navratri, ventures to awaken Durga within women

नवरात्री स्मरण कराता है महिषासुर व् दुर्गा की शिक्षाप्रद अमरगाथा का, जिसमें महिषासुर नामक असुर ने भगवान शिव से किसी भी मानव या देवता से न मर पाने के वरदान को प्राप्त कर धरती पर विध्वंसकारी स्थिति उत्पन्न कर दी थी । जिससे व्याकुल हो सभी ने माँ पारवती के अवतार- दुर्गा का आह्वान किया, जिन्होंने महिषासुर के साथ 9-दिवसीय लम्बा युद्ध किया और स्वयं को अजय समझने वाले महिषासुर का वद्ध ही कर दिखलाया । संतुलन की इन जागरूकता प्रदर्शनीयों व शिक्षाप्रद कार्यशालाओं के माध्यम से नारी के भीतर सुशुप्त उसी अध्यात्मिक शक्ति को जागृत करने का प्रयास किया जाता है और नारी को उसकी आत्मिक शक्ति व ऊर्जा से आत्मसात करवाया जाता है।

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