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श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) द्वारा 1 से 5 नवंबर 2022 तक करनाल, हरियाणा में पाँच दिवसीय भक्ति व आध्यात्मिकता से ओतप्रोत भव्य श्री कृष्ण कथा का आयोजन किया गया। कथा व्यास साध्वी सौम्या भारती जी ने उपस्थित श्रद्धालुओं के समक्ष भगवान श्री कृष्ण के जीवन से बहुमूल्य शिक्षाओं का विवेकपूर्ण व्याख्यान प्रस्तुत किया।

Shri Krishna Katha at Karnal, Haryana Explained the Necessity of True Dedication and Divine Love

साध्वी जी ने श्रोताओं को बताया कि आज के भोगवादी वातावरण में लोग भौतिक इच्छाओं को पूर्ण करने में इतने व्यस्त हो गए हैं कि ईश्वरीय प्रेम व भक्ति की सारगर्भित परिभाषा धूमिल पड़ती जा रही है। आज का इन्सान छोटी-छोटी सांसारिक प्रथाओं में वास्तविक प्रेम को खोज रहा है; जबकि सच्चा प्रेम तो केवल ईश्वर से होता है जिसे पूर्ण सतगुरु की कृपा से अंतर ही अनुभव किया जाता है। यह सत्य है कि भक्ति, शारीरिक व मानसिक स्तर से परे आत्मा व परमात्मा का सर्वोच्च मिलन है। यह अहंकार या काम-वासना नहीं; न लोभ और न ही आसक्ति है। यह परमानंद की उच्चतम अवस्था है जिसे केवल शाश्वत ज्ञान यानि ब्रह्मज्ञान द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। हमारे शास्त्रों में इसके अनेकों उदाहरण हैं। श्री कृष्ण कथा भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाती है फिर चाहे वह मीरा हो, राधा या गोपियाँ।

साध्वी सौम्या भारती जी ने कहा कि भक्ति को वही महान आत्माएँ प्राप्त कर पाती हैं जो चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होती। उन्होंने माता यशोदा का उदाहरण देते हुए समझाया कि उन्होंने अपने बाल गोपाल को प्रत्येक विपदा से बचाया, उस पर अपनी ममता लुटाई, परंतु फिर भी स्वयं को केवल भगवान की दासी ही समझा। भगवान श्री कृष्ण के प्रति शुद्ध भावना रखने वाली राधा जी ने अपने मुरलीधर कृष्ण के साथ निकटता होने पर भी कभी प्रभु के लक्ष्य में बाधा उत्पन्न नहीं की| वृंदावन की सभी गोपियाँ श्री कृष्ण को प्राणों से भी अधिक प्रेम करती थीं परंतु फिर भी कभी मन में एक दूसरे के प्रति ईर्षा या द्वेष का भाव नहीं रखा। भगवान श्री कृष्ण ने प्रत्येक गोपी के साथ ऐसा आंतरिक संबंध स्थापित किया था कि हर गोपी के पास अपने कृष्ण थे।

Shri Krishna Katha at Karnal, Haryana Explained the Necessity of True Dedication and Divine Love

समय के पूर्ण सतगुरु श्री आशुतोष महाराज जी ने ब्रह्मज्ञान प्रदान कर अपने प्रत्येक शिष्य में इसी भक्ति के बीज को अंकुरित किया है और कर रहे है। ब्रह्मज्ञान ईश्वर के साथ अलौकिक संबंध को स्थापित कर हमें उसके समीप ले जाता है। कथा ने इस तथ्य को उजागर किया कि मुक्ति को केवल भक्ति द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है फिर चाहे व्यक्ति किसी भी सामाजिक पद पर क्यों ना हो। मंत्र उच्चारण, भक्तिपूर्ण भजनों व विवेकपूर्ण प्रवचनों ने कथा की शोभा को बढ़ाया। सुमधुर भजनों ने उपस्थित श्रोताओं के मन को संसार से निकालकर ईश्वर के श्री चरणों से जोड़ने में रामबाण का कार्य किया।

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