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गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में दिनांक 26 से 30 जून, 2019 तक पंजाब के संगरूर क्षेत्र में संस्थान द्वारा पांच दिवसीय श्री कृष्ण कथा का आयोजन किया गया। साध्वी गरिमा भारती जी ने कथा का वाचन करते हुए भक्त एवं भगवान के प्रेम की सुन्दर व्याख्या करते हुए बताया कि भक्तों के जीवन में कई विपदाएं आती है किन्तु कोई भी विपरीत परिस्थिति उन्हें भक्ति के मार्ग से विचलित नहीं कर पाती एवं भक्त, भक्ति के चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता है। माँ यशोदा का उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया कि माँ यशोदा ने अपने छोटे से कान्हा को हर संकट से बचाकर अपने वात्सल्य के छाँव तले रखा किन्तु फिर भी स्वयं को एक दास की श्रेणी में रखा। भगवान श्री कृष्ण की अनुरागी भक्त राधा ने कभी समाज की टीका टिप्पणियों की कोई परवाह नहीं की एवं प्रभु की अनन्य भक्त कहलाई।  वृन्दावन के प्रत्येक गोपी-गोपिकाओं, के एक मात्र प्रेम प्रभु श्री कृष्ण थे, किन्तु कभी भी उनके भीतर एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या द्वेष नहीं था अपितु वह सभी भगवान श्री कृष्ण के साथ भक्ति के एक अटूट बंधन में बंधे थे।

Shri Krishna Katha Emphasized on True Devotion and Divine Love at Sangrur, Punjab

साध्वी जी ने कहा कि सांसारिक प्रेम  में शर्त होती है और वह लेन- देन तक सीमित है। कहा भी गया है कि प्यार एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।  वहीं दूसरी ओर भक्ति के सन्दर्भ में प्रेम एक कठिन तपस्या है।  उसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अनेकानेक कष्टों, विपरीत परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। ईश्वरीय प्रेम में अहंकार, वासना या लालच का कोई स्थान नहीं होता और इन पर विजय पाकर ही एक भक्त भक्ति के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त कर पाता है।  यह एक शाश्वत सम्बन्ध है जो कभी नहीं टूटता। कलयुग में जन्मी मीरा बाई, भगवान श्री कृष्ण की एक ऐसी ही भक्त थी , उन्होंने भगवान को अपने पति (पालन करने वाले)  के स्वरुप में धारण  किया।  मीरा के अथाह प्रेम के वशीभूत हो भगवान स्वयं अपने कृष्ण स्वरुप में प्रकट हो कर मीरा को अपने वास्तविक स्वरुप से अवगत कराते है।

भक्ति का मार्ग कायरों के लिए नहीं हैं अपितु इस मार्ग में तो केवल कोई सूरमा ही चल सकता है, जो साहसी एवं दृढ संकल्पित हो। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ने अपने प्रत्येक शिष्य के भीतर ब्रह्मज्ञान के माध्यम से भक्ति के बीज अंकुरित किए हैं।  ध्यान-साधना के निरंतर अभ्यास से ही भक्त अपने ध्येय परमात्मा की निकटता को प्राप्त कर पाता है। भारतीय संस्कृति में ईश्वरीय प्रेम पर आधारित नाम रखने की प्रथा रही है जैसे - राम दास या कृष्ण दास। सेवक अर्थात दास। भक्ति वीरता का मार्ग है जिसपर चलकर उसके उच्चतम शिखर को प्राप्त किया जाता है।

Shri Krishna Katha Emphasized on True Devotion and Divine Love at Sangrur, Punjab

 पांच दिवसीय इस कथा में उपस्थित जन समुदाय तक ब्रह्मज्ञान का सन्देश पहुंचाया गया एवं सभी ने इस कथा का पूर्ण लाभ भी उठाया।

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