भारतीय संस्कृति की धरोहर- रामायण, मानव व समाज को उत्कर्ष तक पहुँचाने की आचार सहिंता के समान है। इस ग्रंथ में अनेक ऐसे बहुमूल्य रत्न हैं जिसके द्वारा सुव्यवस्थित समाज की परिकल्पना साकार हो सकती है। रामायण ग्रंथ स्पष्ट रूप से मनुष्य को कर्मठ बनाने की शिक्षा प्रदत्त करता है- “निर्बल व भयभीत मानव ही अपने जीवन को भाग्य पर छोड़ते हैं, लेकिन सबल और आत्मविश्वासी मानव अपने पुरुषार्थ से अपने भाग्य का निर्माण करते है”। आज हम जिन संघर्षों व विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहे है, वह हमारे द्वारा चयन किए गए पूर्व विकल्पों का परिणाम है। व्यक्ति की असफलता व सफलता दोनों ही उसके कर्मों का परिणाम है, इसलिए व्यक्ति को सदैव अपने कर्मों के प्रति सचेत रहना रहना चाहिए।
भगवान राम अनुशासन, पवित्रता, सरलता, संतोष, निःस्वार्थता और अद्वितीय त्याग के उद्धरण है। उच्च जीवन आदर्शों की पालना हेतु उन्होंने अनेक कठिनाइयों को सहजता से स्वीकार किया फिर चाहे पिता वचन पालना हेतु चौदह वर्षों के वनवास को स्वीकार करना हो या राम राज्य के लिए अपनी पत्नी देवी सीता का त्याग करना हो। श्री राम ने अपने अवतरण के माध्यम से समाज में आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श भाई और आदर्श राजा आदि के स्वरूप को स्थापित किया।
मानव जीवन के मुख्य उद्देश्य के प्रति समाज को जागरूक करने के लिए, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने शिमला, हिमाचल प्रदेश में 28 अप्रैल से 4 मई 2019 तक सात दिवसीय “श्री राम कथा” का कार्यक्रम आयोजित किया। आध्यात्मिक प्रवक्ता व साध्वी श्रेया भारती जी ने अपनी सरस वाणी द्वारा श्री राम कथा के माध्यम से समाज को वास्तविक भक्ति की प्राप्ति का मार्ग प्रदान किया। उन्होंने बताया कि ईश्वर रूपी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक भक्त को निरंतर भक्ति पथ पर बढ़ते रहना चाहिए।
सतगुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा व मार्गदर्शन द्वारा, श्री राम कथा का शुभारंभ मंगल कलश यात्रा के साथ शांति संदेश को प्रसारित करते हुए हुआ। कथा का आरम्भ भगवान श्री राम के चरण कमलों में पवित्र प्रार्थना द्वारा हुआ। साध्वी जी ने वर्तमान समाज में व्याप्त संत और असंत विषय पर विस्तार से विचारों को रखा। उन्होंने बताया कि जहाँ समाज में असंतों का ताँता लगा है वहीँ दूसरी ओर समाज में पूर्ण सतगुरु भी विद्यमान हैं। पूर्ण सतगुरु वे युगपुरुष होते हैं जो लोगों को ईश्वरीय ज्ञान से जोड़, उन्हें आध्यात्मिक जागृति की ओर अग्रसर करते हैं। श्री राम ने न केवल अपने परिवार के लिए, बल्कि समाज के लिए भी अपना बलिदान दिया है। आज सभी संबंधों के विनाश का मुख्य कारण यही है कि मनुष्य स्वार्थी हो गया है। भगवान राम ने अपने जीवन से सिखाया है कि अपनी इच्छाओं का त्याग कर, अपने कार्यों से समाज की सेवा करनी चाहिए।
ब्रह्मज्ञान की सनातन ध्यान विधि का अभ्यास करके मानव अपने भीतर श्री राम और राम राज्य की स्थापना कर सकता है। उपस्थित लोग संस्थान के निःस्वार्थ स्वयंसेवकों के प्रयासों से प्रभावित हुए। श्री राम कथा की दिव्य आभा ने सभी भक्तों को आह्लादित किया। उन्होंने संस्थान की सामाजिक गतिविधियों का परिचय प्राप्त कर, अपना योगदान देने का प्रण लिया। अनेक लोगों द्वारा ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति ने कार्यक्रम की सफलता को प्रमाणित किया।