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दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य सानिध्य  में कुंभ मेला प्रयागराज में  6 से 12 फरवरी  तक 7 दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कथा व्यास साध्वी आस्था भारती जी ने श्रीमद भागवत महापुराण का सुन्दर व्याख्यान किया।  कार्यक्रम की शुभारम्भ वेद मंत्र एवं प्रभु की पावन चरण स्तुति के साथ किया गया। इस कथा को विभिन्न प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा कवर किया गया। 7-दिवसीय कथा का विशेष प्रसारण संस्कार चैनल पर 7 फरवरी से 13 फरवरी भी किया गया। कार्यक्रम में कई गणमान्य अतिथियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

Shrimad Bhagwat Katha Awakened Devotees to Dive into Inner World Kumbh @ Prayagraj

साध्वी जी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कई आलौकिक रहस्यों को उद्घाटित किया है। ब्रह्मज्ञान विज्ञानों का विज्ञान है जिसमें कई रहस्य समाहित है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि - ये भौतिक संसार जिसे हम मन, वाणी, आंख, कान और अन्य इंद्रियों के माध्यम से अनुभव करते हैं ये नश्वर है। आज आवश्यकता है उस शाश्वत सत्य को जाना जाए, अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करें। आज के मानव की सबसे बड़ी विडम्बना यही है कि वह ये अनमोल मानव तन पाने के बाद भी उस परम लक्ष्य परमात्मा तक पहुंचने , उन्हें पाने का प्रयास नहीं करता। 

साध्वी जी ने भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं को आज के समय से तुलना करते हुए बताया कि आज भी समाज में कुछ ऐसी ही भ्रांतिया फैली है जो उस समय प्रचलित थी।  उन्होंने राजा पौंड्रक की कथा सुनाते हुए बताया की राजा पौंड्रक खुद को भगवान श्री कृष्ण मानता था और प्रभु ही की भांति वो गरुड़, सुदर्शन, कौमोदकी, सारंगा, नन्दका आदि सभी वस्तुओं को धारण करता था।  प्रभु की इन सारी वस्तुओं पर वो अपना एकाधिकार समझता था इसके अतिरिक्त वो सबको खुद को भगवान श्री कृष्ण मानने के लिए बाध्य करता था। आज भी समाज की यही स्तिथि है आज भी आध्यात्म के नाम पर बहुत सी संस्थाएं खोली जा रही है , बहुत लोग खुद को आध्यात्मिक गुरु बताते है, अनेकोनेक किताबें , लेख इत्यादि लिखे जा रहे है जिनमे आध्यात्म , ध्यान , साधना का विवरण है लेकिन जिनका सत्यता से जो कि हमारे धार्मिक शास्त्र ग्रंथों में विदित है कोई लेना देना नहीं है। एक पूर्ण गुरु की पहचान सनातन पुरातन काल से चला आ रहा ब्रह्मज्ञान है, जिस  क्षण वो हमारे जीवन में आते है उस क्षण वो हमारा दिव्य नेत्र खोल दिव्य दृष्टि प्रदान करते है और हम उस आलोकिक सत्ता का अपने घट के भीतर दर्शन कर पाते है। ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करने का अधिकार प्रत्येक मानव का है , कोई शारीरिक विकलांगता इसे प्राप्त करने में बाधा नहीं बन सकती क्योंकि ये दिव्य ज्ञान इन्द्रियों से परे है। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी इस समय के पूर्ण संत है और जो ईश्वर पिपासु है वह ब्रह्मज्ञान की प्राप्त कर अपने जीवन को सफ़ल बना सकते है।

Shrimad Bhagwat Katha Awakened Devotees to Dive into Inner World Kumbh @ Prayagraj

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