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श्री कृष्ण कथा द्वारा दिव्य प्रेम की दिव्य निर्झरी ने 20 से 24 अगस्त, 2019 तक लुधियाना, पंजाब में लोगों को तृप्त किया। साध्वी जयंती भारती जी ने व संत समाज ने श्री कृष्ण की दिव्यता को विचारों, लीलाओं व भजनों के माध्यम से प्रस्तुत किया। सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथाव्यास साध्वी जयंती भारती जी ने श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों द्वारा जगद्गुरु श्री कृष्ण के संदेशों को सरल व तर्कपूर्ण ढ़ंग से रखा। भगवान कृष्ण का जीवन जन्म से अंत तक उतार-चढ़ाव व प्रतिकूल परिस्थितियों से भरा रहा परन्तु फिर भी उन्होंने जीवन में संतुलित रहते हुए उत्कर्ष की ओर बढ़ाना सिखाया। श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण ने अपने अवतरण का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि “जब-जब समाज में अधर्म की अभिवृद्धि होगी, तब-तब मैं धरा पर धर्म को स्थापित करने हेतु प्रगट होता हूँ। साधुओं का रक्षण व दुष्टों का विनाश कर समाज में धर्म को स्थापित करता हूँ”। ईश्वर सर्वशक्तिमान है यदि वे चाहें तो अपने संकल्प मात्र से अपने लक्ष्य को सिद्ध कर सकते है परन्तु फिर भी वे जब भी पृथ्वी पर अवतरित होते हैं तो एक साधारण मनुष्य के समान संघर्षों को पार करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। मानव जाति को संदेश देते हैं कि कैसी भी परिस्थिति हो सदैव सत्य के मार्ग पर बढ़ते रहो व अपने लक्ष्य को विजित करो। 

Spiritual Bliss Experienced Amidst Whirlpool of Worldly Pleasure at Shri Krishna Katha held at Ludhiana, Punjab

साध्वी जी ने अपने विचारों में मृत्यु की सत्यता को प्रगट करते हुए कहा कि मृत्यु इस संसार का एक अपरिहार्य सत्य है जो हर जीवन के साथ सहज रूप से जुड़ा है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि सुख-दुःख, लाभ-हानि और जय-पराजय आदि प्रत्येक स्थिति में संतुलित रहते हुए कर्म को पूर्ण करने वाला मानव जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसी सन्दर्भ में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी ने अपने श्री वचनों में कहा कि “मनुष्य के जीवन में न तो उसकी जन्म तिथि महत्वपूर्ण है और न ही मृत्यु तिथि महत्वपूर्ण है, अपितु इन दो तिथियों के बीच में किए गए कार्य वे कार्य महत्वपूर्ण है जो उसे महान बनाते हैं”।

महाभारत में, भगवान कृष्ण ने पांडवों का सहयोग किया क्योंकि वे धर्म मार्ग पर अग्रसर थे। भगवान कृष्ण ने पांडवों को सत्य के पथ पर चलने हेतु अग्रसर किया परन्तु साथ ही उन्होंने समाज में व्याप्त भ्रान्ति को भी समाप्त किया कि मात्र त्याग ही धर्म हैं। जगद्गुरु का स्पष्ट उद्घोष रहा कि धर्म पलायन करना नहीं है अपितु धर्म तो अधर्म को समाप्त करना है। समाज में शांति को स्थापित करने हेतु अधर्मियों को रोकना भी धार्मिक मनुष्यों का कार्य है। परन्तु यह सत्य मात्र शब्दों से समझाया नहीं जा सकता इसलिए श्री कृष्ण ने अर्जुन को ब्रह्मज्ञान द्वारा जागृत करते हुए उसे वास्तविक धर्म से परिचित करवाया। ब्रह्मज्ञान द्वारा ही ईश्वर की सत्यता को जानकर अर्जुन धर्म पथ पर श्री कृष्ण के सहयोगी बन पाएं।

Spiritual Bliss Experienced Amidst Whirlpool of Worldly Pleasure at Shri Krishna Katha held at Ludhiana, Punjab

वर्तमान समय में, सद्गुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी विश्वभर में अनेकों भक्तों को ब्रह्मज्ञान द्वारा जागृत कर वास्तविक कर्म व धर्म पथ की ओर अग्रसर कर रहे हैं। ब्रह्मज्ञान की शक्ति से ओतप्रोत होकर मानव आध्यात्मिक रूप से सक्षम व विकसित हो जाता है। ध्यान के निरंतर अभ्यास द्वारा व्यक्ति कर्म के महत्व का समझकर और सहजता से चुनौतियों का सामना कर पाता है।

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