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एक शिष्य के लिए सभी उत्सवों में गुरु पूर्णिमा का उत्सव सबसे श्रेष्ठ होता हैं l यह दिव्य क्षण मात्र आत्मिक स्तर पर महसूस किया जा सकता है l मोक्ष प्राप्ति मनुष्य का मुख्य लक्ष्य और सबसे बड़ी उपलब्धि हुआ करती है l योगी सदियों तक तपस्या करते है लेकिन फिर भी उस परमतत्व (ईश्वर) को न तो समझ पाते है और न ही प्राप्त कर पाते है l यह मात्र एक पूर्ण गुरु की कृपा द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है l सतगुरु की कृपा से एक शिष्य 'आत्मज्ञान' के माध्यम से परमानंद को प्राप्त कर सकता है l लोग शांति की तलाश में पहाड़ो, नदियों, वनो, मंदिरो, इत्यादि में जाते है, इसी विषय पर संत सहजोबाई जी कहती है कि गुरु के चरण वह स्थान है जहाँ पर सभी तीर्थो की यात्रा के पुण्य और परमानन्द की प्राप्ति होती है l सतगुरु के सिवा संपूर्ण ब्रह्माण्ड  में ऐसा कोई नहीं है जो परमानन्द को प्रदान कर सके l वर्तमान में परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी असंख्य लोगों को 'आत्मज्ञान' प्रदान कर उनके हृदयों के बादशाह बन गए है l अपनी असीम कृपा और उदारता से वह सदैव अपने शिष्यों की रक्षा करते है l वास्तव में एक शिष्य को चाहिए कि वह ऐसी महान सत्ता के चरणों में अपने श्रद्धारूपी मनोभावों को समर्पित कर उनका विधिपूर्ण वंदन करे l इस शैली में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के नूरमहल आश्रम में 16 जुलाई 2019 को गुरु पूजा पर्व को विशेष रूप से मनाया गया l  
इस विशेष दिन अताह उत्सव एवं परम आनंद का अनुभव किया जा सकता है l  संस्थान वैश्विक भाईचारे तथा एकता का एक उल्लेखनीय उदाहरण है l आश्रम के प्रांगण को फूलो, रंगो, मोमबत्तियों, लाइट इत्यादि से सजाया गया l भक्तो ने अपने गुरुदेव की स्तुति गाते हुए उनकी महिमा का गान किया l सभी सेवादार बड़े ही उत्साह से अपनी सेवाएं देने के लिए तत्पर थे l  सभी शिष्यों द्वारा महाराज जी के चरणों में प्रार्थना एवं सामूहिक साधना की गई l 
प्रचारक शिष्यों ने गुरु - शिष्य के बंधन पर बताते हुए कहा कि इस संसार में केवल गुरु - शिष्य का नाता ही पवित्र माना गया है l गुरु के लिए कुछ भी और जितना भी किया जाए वह कम है l उन्होने बताया कि जब मानव अपने मन  के वशीभूत हो उसके अनुसार चलता है तो वह अज्ञानता की ओर बढ़ जाता है l गुरु का पदार्पण इस धरा पर मानव को अज्ञानता के अँधेरे से निकाल प्रकाश की ओर अग्रसर करने के लिए  होता है l जब शिष्य अपना पूर्ण समर्पण कर गुरु के हाथो का यंत्र बन जाता है तभी वह गुरु की प्रसन्नता और कृपा को प्राप्त कर लिया करता है l महाराज जी द्वारा विश्व में शांति की स्थापना के लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पण कर अपनी सेवाएं देना ही वास्तविक गुरु पूजा है l दूसरे शब्दों में, यह दिन नए संकल्प लेने और अपने गुरु द्वारा दी गई आज्ञाओ को पूरी ईमानदारी से पालन करके उनकी सेवा करने का संकल्प लेने का दिन है l  गुरुदेव की दिव्य याद में असंख्य आँखे अश्रुओ से और हृदय भक्ति से सराबोर हो उठा l सभी ने गुरु के कमलचरणो में समस्त मानव जाति के कल्याण हेतु प्रार्थना की l आश्रम का वातावरण शांति और ख़ुशी से झूम उठा l  

Sacred Guru Purnima Celebrations at Nurmahal, Punjab Submerged Every Soul into Devotion

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